नर मेघ | Nar Megh

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Nar Megh by अज्ञात - Unknown

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अज्ञात - Unknown

Add Infomation AboutUnknown

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
अध्यंदान ** ^~“ प्रज्वलित दीपशिखा ही कलमल करती है, बुभकर तो वह्‌ निष्कप हो जाती है । तुम भी श्रव, उसी वरह, मेरे पास निष्कप हो; स्थिर होगई हो । -* उस्र दिन रात को तुमने फूलों की माला दी थी न ! याद हैं ? वद्द मेरे पास है । माला के साथ दी उस के पीछे की भावना भी मुमसे ल्िपटी है । -“* तुम पत्थर टौ न । यही तुम्हें मेनि कदा मी था । और पत्थर पर, पाषार-प्रतिमा पर सदा से श्रघ्यं चद्ाया जाता रदा है। ००००० इसे स्वीकार करो । सवंदानन्द्‌ वर्मा




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now