प्रकृता भासा और साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास | Prakrta Bhasa Aur Sahitya Ka Alocanatamaka Itihasa
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
25 MB
कुल पष्ठ :
670
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आमुख ५
शृद्धार भौर जीवन सभोग सम्बन्धी चित्रों के अतिरिक्त दाब्द और अथं चमत्कार से
युक्त अनूठी सुक्तियाँ भी प्राकृत साहित्य में विद्यमान हैं । दुष्ट के स्वभाव का दलेप और
उपमा कै द्वारा सुन्दर चित्रण किया है । यथा--
वसइ जहि चेभ खरो पोसिज्जन्तो सिणेहदा्णेहि
तं चेअ आलं दीभओ व्व भइरेण मइलेइ ॥ गाथा० २।२ ।
जिस घर में स्नेहदान द्वारा खलजन सवद्धित होते है, स्नेह-तेलदान हारा पोषितं
दीपक की भाँति वे उस घर को शीघ्र ही मलिन बना देते है ।
जे जे गुणिणो जे जे चाइणो जे वियरद्धावण्णाणा |
दारिद्ध रे विअवखण ताण तुमं साणुराओ सि ॥ गा० ७।७१।
हे दारिद्र, तु सचमुच कुशल है, क्योकि तु गुणियो, त्मागियो, विदग्धो एवं
विन्ञानियो से अनुराग रता है
ज जि खमेइ समत्थो, धणवतो ज न गन्वमुव्वहुइ ¦
ज च सविज्जो नमिरो, तिसु तेसु अलूकिया पहवी ॥ वल्नारग्य ८७ |
सामथ्यंवान् जो क्षमा करे, घनवान् जो गवं न करे, विद्वान् जो नम्र हौ--इन तीन
से पृथ्वी मलकृत है ।
दान का महत्त्व बतलाते हुए लिखा है--
किसिणिज्जति लयता उदहिजलं जलहरा पयत्तेण ।
धवलीहुती हु देता, देंतलयन्तस्तर पेच्छ || वल्ञा० १३७ |
बादल समुद्र से जल लेने में काले पड जाते हैं और देने में--वर्षा हो जाने के
उपरान्त, घवल हो जाते है, देने और लेने का यह अन्तर स्पष्ट देखा जा सकता है ।
शील की महत्ता का निरूपण करते हुए कहा है--
भधणाण घण सीर भूसणरहियाण भूसण परमं ।
परदेसे नियगेह सयणविमुङ्काण नियसयणो ॥ आख्यानमणिकोश
२९ अ०, २८४ गा०, पु° २५४ |
दील निघंनो का धन है, आभूपण रहितो का आभूपण ह, परदेश मे निजगृहं हँ
ओर स्वजनों से रहितो के लिए स्वजन है ।
भअविचारित कार्य सदा कष्ट देता है, इससे व्यक्ति का मन सदैव पश्चात्ताप से
जलता रहता है । कवि अविचारित कायं के पश्चात्तापं का यथार्थं चित्रण करता हुआ
कहता हु
न तहा तवेइ तवणो, न जलियजलणो, न विज्जुनिग्घाओ ।
ज॑ अवियारियकज्ज॑ विसवयत तवइ जतु ॥ गाख्यानमणिकोश,
५।९९५ पु० ९४ |
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