प्रथम राष्ट्रपति बाबू | Pratam Rashtrapati Babu
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
58
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जीवन की एक लक १३
दुनिया से सभी सम्पकरै तोड़ लेने का उनका स्वभाव था।
१६३२ से १६४२ तक का उनका! राजनैतिक जीवन जेलयात्राश्र ओर
चीसारियों से भरा है । वे भयदहीन साहस से जेल जाने के लिए तत्पर
रहते थे । उल मदन संचालक कौ आज्ञा पर उन्होंने व्यक्तिगत
सत्याग्रह में माग नहं लिया । वापू के शब्दों मे उस समय जेल जाना
सरकार पर उनके अस्वस्थ शरीर का भार फैकना था चौर इसलिए वह
अिसा धमं के विरुद्ध था।
न
उनका जेल-जीवन छपरा जेल से प्रारम्भ हुआ और सन् १६४२
के तूफानी दिनों से लेकर सन् १६४४५ तारीख १४ जून की संन्ध्या का
चोकीपुर जेल में समाप्त हुआ ।
राजनैतिक सेवाओं के समान ही उनकी सामाजिक सेवाएँ भी
निरसन्देद महान दै । (दरिजन-उद्धारः अस्पृश्यता की समाप्ति
साप्रम्दायिक संतुलन चनाये रखना उनकी निरन्तर की चिन्तायें
^~
रही है ।
विहार भूकम्प और वाढ़ से पीड़ितों की सेवा उनके जीवन का
सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य रहा हैं और इसके लिए उन्हें समुचित श्रेय भी
मिला दे
उनकी शिक्षा-सस्वन्धी सेवायें भो किसी अंश में कम नहीं हैं
उनकी प्रेरणा पर दी चनारस में स्वप्रथम अखिल भारतीय हिन्दी
सादिस्य-सम्मेलन की संयोजना हुई । वे कुछ दिनों तक घथिहदार विद्या-
पीठ के आचार्यं मी रहे ह । वे मददात्मा गांधी की धारणा पर राष्ट्र
भाषा के विकास की संस्था हिन्दुस्तान एकेडेसी के अध्यक्ष हैं। वे
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