प्रथम राष्ट्रपति बाबू | Pratam Rashtrapati Babu

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Pratam Rashtrapati Babu by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जीवन की एक लक १३ दुनिया से सभी सम्पकरै तोड़ लेने का उनका स्वभाव था। १६३२ से १६४२ तक का उनका! राजनैतिक जीवन जेलयात्राश्र ओर चीसारियों से भरा है । वे भयदहीन साहस से जेल जाने के लिए तत्पर रहते थे । उल मदन संचालक कौ आज्ञा पर उन्होंने व्यक्तिगत सत्याग्रह में माग नहं लिया । वापू के शब्दों मे उस समय जेल जाना सरकार पर उनके अस्वस्थ शरीर का भार फैकना था चौर इसलिए वह अिसा धमं के विरुद्ध था। न उनका जेल-जीवन छपरा जेल से प्रारम्भ हुआ और सन्‌ १६४२ के तूफानी दिनों से लेकर सन्‌ १६४४५ तारीख १४ जून की संन्ध्या का चोकीपुर जेल में समाप्त हुआ । राजनैतिक सेवाओं के समान ही उनकी सामाजिक सेवाएँ भी निरसन्देद महान दै । (दरिजन-उद्धारः अस्पृश्यता की समाप्ति साप्रम्दायिक संतुलन चनाये रखना उनकी निरन्तर की चिन्तायें ^~ रही है । विहार भूकम्प और वाढ़ से पीड़ितों की सेवा उनके जीवन का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य रहा हैं और इसके लिए उन्हें समुचित श्रेय भी मिला दे उनकी शिक्षा-सस्वन्धी सेवायें भो किसी अंश में कम नहीं हैं उनकी प्रेरणा पर दी चनारस में स्वप्रथम अखिल भारतीय हिन्दी सादिस्य-सम्मेलन की संयोजना हुई । वे कुछ दिनों तक घथिहदार विद्या- पीठ के आचार्यं मी रहे ह । वे मददात्मा गांधी की धारणा पर राष्ट्र भाषा के विकास की संस्था हिन्दुस्तान एकेडेसी के अध्यक्ष हैं। वे




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