राजपूतों का आदर्श | Rajputon Ka Aadarsh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
96
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)# राजपूनो का झादूशे
११०००५०५.
“राजादही रा्र्-देश की शोभा है” । अथीत् जो राजा
प्रजा का रंजन करता है वह् राष््की शोभा बढ़ाता है।
इस प्रकार का राजा किस आधार पर रहता है वह
तैत्तरीय ब्राह्मण भें लिखा है -
विशि राज्ञा प्रतिष्ठितः ॥ तै० घ्रा० २
“प्रजा के आधार पर राजा रहता हैः । इस विषथ
के और भी सहस्रो परमाण वेदों में रामाथण में और
- महाभारत रादि प्राचीन ग्रंथो. में मिलते हैं। यदि
राजा लोग अपने कत्तव्यों की तरफ ध्यान देने लगें तो
उनकी प्रजा का ध्यान खद् बखद अपने कत्तव्य की
तरफ खिंच जायगा । जेसा कि महषिं याज्ञवल्क्य ने
लिखा है कि :
राच्चि धर्मिखि धर्मिष्ठाः पपि पापाः समे समाः |
प्रजास्तदञचवत्तन्ते यथा राजा तथा प्रजा ॥
“राजा के धमौत्मा होने से परजा भी घर्मात्सा बन
जाती है और राजा के पापी होने पर प्रजा में भी
पाप फेल जाता है । प्रजा हमेशा राजा के पीछे चलती
है और जैसा राजा होता है वैसी प्रजा हो जाती है ।”?
इस बात को प्रसिद्ध लेखक मिस्टर क्ञाडियन ने इस
प्रकार प्रकट किया है।?--
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-(गद्पताश्ना
सुग्रल सम्राट् जहांगीर मे अपने “जहांगीर नामा
में एक स्थान पर लिखा है कि--
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