राजपूतों का आदर्श | Rajputon Ka Aadarsh

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Rajputon Ka Aadarsh by किशोर सिंह खीची - Kishor Singh Khichi

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about किशोर सिंह खीची - Kishor Singh Khichi

Add Infomation AboutKishor Singh Khichi

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
# राजपूनो का झादूशे ११०००५०५. “राजादही रा्र्-देश की शोभा है” । अथीत्‌ जो राजा प्रजा का रंजन करता है वह्‌ राष््की शोभा बढ़ाता है। इस प्रकार का राजा किस आधार पर रहता है वह तैत्तरीय ब्राह्मण भें लिखा है - विशि राज्ञा प्रतिष्ठितः ॥ तै० घ्रा० २ “प्रजा के आधार पर राजा रहता हैः । इस विषथ के और भी सहस्रो परमाण वेदों में रामाथण में और - महाभारत रादि प्राचीन ग्रंथो. में मिलते हैं। यदि राजा लोग अपने कत्तव्यों की तरफ ध्यान देने लगें तो उनकी प्रजा का ध्यान खद्‌ बखद अपने कत्तव्य की तरफ खिंच जायगा । जेसा कि महषिं याज्ञवल्क्य ने लिखा है कि : राच्चि धर्मिखि धर्मिष्ठाः पपि पापाः समे समाः | प्रजास्तदञचवत्तन्ते यथा राजा तथा प्रजा ॥ “राजा के धमौत्मा होने से परजा भी घर्मात्सा बन जाती है और राजा के पापी होने पर प्रजा में भी पाप फेल जाता है । प्रजा हमेशा राजा के पीछे चलती है और जैसा राजा होता है वैसी प्रजा हो जाती है ।”? इस बात को प्रसिद्ध लेखक मिस्टर क्ञाडियन ने इस प्रकार प्रकट किया है।?-- 116 गुणी छा'७ 9810716त्‌ स्टल्गवाष् 60 पिए्6 6द8ता।- 716 0 छा नाए पट छण्पें 6ताटा का'०. एल 1685. छ०प61' 01181 ४16 700००१५} 118 1108 € 0170168. -(गद्पताश्ना सुग्रल सम्राट्‌ जहांगीर मे अपने “जहांगीर नामा में एक स्थान पर लिखा है कि--




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now