शूल निदान चिकित्सा | Shul Nidan Chikitsa
श्रेणी : स्वास्थ्य / Health
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
25.87 MB
कुल पष्ठ :
336
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)क शुल एक लक्षण है ?
प्रो वेणीमाधव अश्विसीकुपार शास्त्री
प्रोफेसर एव विभागाध्यक्ष काय चिर्त्सा विभाग
* जासकीय आयु० महाविद्यालय एव चिकित्सालय, ग्वालियर
मानसेवी आयु० चिकित्सक राज्यपाल-म प्र
जे रे किन
थी चेगीमाघंव अश्विनी कुमार जी शास्त्री जायुर्वेद जगत के
प्रकाण्ड विद्वान हैं। सम्प्रति शास कीय आयुर्वेद महा विद्या ग्वालियर
से आचार्य पद पर भासीन है तथा से प्र. के राज्यपाल के निजी
मानद चिकित्सक हैं । जाप राजस्थान के सरल निदासी हैं + आपको
'घन्वन्त रि' से विशेष लगाव है और प्रत्येक विशेषाक में अपना
लेख भेज फर अपना योगदान देते है । मेरे आग्रह पर आपने 'शूल
एक लक्षण है' नामक लेख भेज कर आयुर्वेद सिद्धात का प्रतिपादन
किया है । गायुर्वेद जगत को मापसे विशेष भपेक्षायें हूं ।
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न
न. पिन न कि का 8.4. बन
5...
आयुर्वेदीय रोग निदान के अनुसार जूल रोग न हो
कर एक लंक्षण है । अत लक्षण की चिकित्सा मे हेतु
विपरीत खिकित्सा सच लाभकर नही, अत सबंदा व्याधि
विपरीत चिकित्सा अथवा उभय विपरीत चिकित्सा क्रम
श्रेप्ठ होता है ।
आयुर्वदीय विकृति विज्ञान के अनुसार वातदोप की
दुष्टि विशेष के कारण रुजा उत्पन्न होती है । फ्ति से
पाक और कफ से पूथ उत्पन्न होता है । “वाताहते नास्ति
सजा” वचन की सूध्म विचारणा करने पर यह ज्ञात
होता हे कि 'वातकृत सजा का ही विकसित एक सूप
णूल सक्षण है ।
बात की विकृति के अनेकों रुप स्यान-कर्म-अवयव
अधिप्ठान धातु-बंचार माग-स्रोतसू तथा प्रकोपक हेतु के
अनुसार होते है । किन्तु इन सभी में शूल लक्षण सर्वा-
घिक शीर्पस्थ एव रोगी एव चिकित्सक दोनो का ध्यान
आऊृप्ट करता है । कं
शुल की सस्प्राप्ति--
कर
अवरोधघ उत्पन्न होता है तभी शूल उत्पन्न होता है |
आयुर्वेदीय विक्ृति विज्ञान (?80001089 के अनुसार
विकृति का स्वरूप शरीर के सभी स्रोतसू में
निम्न चार प्रकार का अवेक्षण किया गया है--
(१) अतिप्रवृत्ति ।
(२) संग 1
(३) बविमागं गमत ।
(४) ग्रन्थि ।
इन चारो प्रकार की विकृतियों मे से सग चघिकृति
अवरोध उत्पत्त कर जूल का प्राथमिक कारण वनती
हे | अन्य दूरगामी प्रकारो में वातवाहिनी रचना पर
आघात दवाव-तत्स्थान के रक्त सवहन में अवरोध-स्या-
निक शोब-विजातीय पढार्थों द्वारा अवरोध
एप ५0 9065) भी अवरोध उत्पन्न कर
जुल उत्पत्ति करता है ।
शूल उत्पत्ति के लिये बातवाहिनी में अवरोध जहा
रचनात्मक दृष्टि से प्राथमिक महत्न की घटना होती है
वातवाहिनी तित्रिका) सचार मार्ग से जब कभी. वही वातवाहिनी मे सचरण करने वाले चायु ढोप का
जिन कक कक कक किक कक किक सिवा
[ ४१. 3]
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