बुद्ध और अवतार एक अध्ययन | Budh And Avtar One Study

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Budh And Avtar One Study by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रथम अध्याय विषय प्रवेश १. भारतीय संस्कृति का मूल उत्स भारतीय संस्कृति पवित्र गगा नदी के समान है, जिसमें अनेक धाराएँ विलीन होती ईँ भौर प्रादुर्भूत होती है । भारतीय सस्कृति समन्वय को सस्कृति है । उसमे विविधता मे भी एकता है 1 प्राचीन भारतोय संस्छृति- जैन, वौद्ध और वैदिक परम्परामो का त्रिवेणी-संगम दै, ममे भो जेन मौर वीद्ध परम्पराएु श्रमण धारा की, और हिन्दू परस्परा वैदिकधाराको प्रतिनिधि हैं। यहाँ हमे यह स्मरण रखना चाहिये कि चाहे अपने मूल उत्स निवृत्तिमागं और प्रवृत्तिमागं की दृष्टि से हम श्रमण और वेदिक धारा को अलग-अलग भले ही करें किन्तु दोनो ही परम्पराओ ने एक दूसरे को इतना प्रभावित किया है कि आज श्रमण धारा भौर वेदिक धारा को मूल स्वरूप में खोज पाना अत्यन्त हो कठिन है। श्रमणो ने वेदिको से भोर वेदिको ने श्रमणो से वहत कुछ केकर आत्मसात्‌ कर लिया है । जैन मौर बौद्ध धर्मों का हिन्द घमं पर विक्षेप रूप से वैष्णव धमं पर मीर वेष्णत्र धर्म का जेन मौर वौद्ध घर्मो पर काफी प्रभाव देखा जा सकता है । प्रस्तुत तीर्थकर, वुद्ध भौर अवतार की अवधारणाओो का तुलनात्मक अध्ययन इन धाराओ की पारस्परिक निकटता और दूरी को समझने की दृष्टि से किया गया है। वरतुत कोई भी संस्कृति शुन्य से पेदा नही होतो, वह्‌ अपने देश, कार ओौर परिस्थिति कौ उपज होती है। भत समान देश, कार गौर परिस्थिति मे उत्पन्न विचारधाराएं दाश्ंनिक दुष्ट से कुछ भिन्नता रसते हुए भी व्यावहारिक क्षेत्र मे वस्तुत भिन्न नही होती ! जैन, बौद्ध ओर वेदिक परम्पराएं वित्लार भारतीय परम्परा के विभिन्‍न अगो के रूप में विकसित हुई हैं, मत उनके वीच विभिन्नतामो कै होते हुए भी कही समन्वय के सूत्र निहित है । उन्ही के सन्दर्भ मे इनकी दाशंनिक ओर धार्मिकं यवघारणाभो का मूल्याकन किया जा सकता है । विद्धानो ने भारतीय धर्मो को मुख्य रूप से दो भागों मे विभाजित किया है--१ प्रवतंक घम्म गौर २ निवर्तक धमं । जहा जैन भौर बौद्ध धर्मं निवतंक धारा से सम्बन्धित ह वहां वैदिक धमं प्रवत॑के धारा का प्रतिनिधित्व करता है । प्रवतंक धमं मुख्य रूप से समाजोन्मुख है और




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