मेरे बच्चे | Mere Bachche

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आर्थर मिलर - Arthar Milar

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प्रतिभा अग्रवाल -Pratibha Agrawal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जमुना : डावर सतित : डाबटर : + भ्नुराधा भरा गपी ? : दँ, कल रात झायी है, एक बजे की गाड़ी से, हम उसे ले झापे । सच ललित जमुना खक्रटर ; दान्ति डाक्टर डावंटर : क्रान्तिः डापटर जमुना ` क्षान्ति मालूम है ? शरान वह्‌ उष्क्टरके वैभवे धर्मामीटर लेकर चम्पत हो गया है। : कया मुसीबत है ! जिस किसी लड़की को देखा, उसका टेम्परेचर लेने सगता है। भ्रापका वेटा सही माने में डावंटर बनेगा । खूब स्मार्ट है । जमुना भोर ललित हंस पड़ते हैं--डादटर भी साथ देता अर हा भ्रतुराधा कहाँ है ? दिखी नहीं ? डॉक्टर, भनु रापा इतनी बड़ी हो गयी है पौर इतनी खूबसूरत कि पूछो मत! दो ही बरसों में जैसे वह बच्ची से युवती वन गयी है। उनका बडा सुखी परिवार हमारे पड़ीस में रहा करता था। में उससे मिलने को उत्सुक हो रहा हूँ । चलो, मुदल्ले में कोई देखने लायक लडकी तो भ्रायी ! श्रपने चारों श्रोर तो एक भी सूरत ऐसी नही है जिसकी श्रोर नजर तक उठायी जा सके*** शान्ति का प्रवेश सिवाय मेरी परनी के । : मित्तेज़ तनेजा का टेलीफोन है । : उसे श्रव क्या हो गया ? शान्ति : मैं बा जानूं, ग्राप ही जाकर पृछिए । चुड़ल कहीं की ***वोल तो ऐसे रही थीं मानो बहुत तकलीफ मैं हो ! कह क्यों नहीं दिया कि थोड़ी देर लेट रहे । मैं बयों कहने जाऊं? भ्रापकी मधुर श्रावाज सुने बिना उसे चैन कहाँ ! ***उसके सेंट की सुगन्ध टेलीफोन पर मी झा रही थी । जाश्रोः* जाग्रो वह्‌ व्याकुल हो रही होगी । : मेरी तो बड़ी मुसीबत है घोलते-घोलते प्रस्थान : क्यों चेकार वेचारे को कोंचती हो ? डावटरी पेशा है सो औरतें फोन तो करेंगी ही ! : हाँ, तोकरें न! मैंने तों इतना ही कहा कि मिसेज तनेजा का फोन है। मेरे बच्चे / १७




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