हिंदी नवलेखन | Hindi Nvlekhan

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Hindi Nvlekhan by धीरेन्द्र वर्मा - Deerendra Verma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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क श्द हिन्दी नवलेखन गद्यको उसने एक ऐसी सामर्थ्य अवश्य प्रदान की है जिसके सहारे बह आधुत्तिक चितनका माध्यम बन सका है । हिन्दी-नवलेखनकी साहित्यिक पृष्ठ्भूमिका संदर्भ तब तक अधूरा रहेगा जब तक अंग्रेज़ी तथा यूरोपियन नवलेखनकी रूपरेखा नहीं समझ ली जाती । इस दृष्टिसे अंग्रेज़ी तथा यूरोपियन न्यू राइटिंग का एक संक्षिप्त विवरण प्रमुखत लेमेनके साक्ष्यपर यहाँ प्रस्तुत किया जाता है । पद्चिमके देशोंमें नवलेखनका घनिष्ट सम्बन्ध दो महायुद्धोंसे है । प्रथम महायुद्धने यू रोपकी मानसिक संवेदनाकों गहराई तक झकझोर दिया था । युद्धननित भौतिक क्षतियाँ तो कुछ समयमें पूर्ण हो जाती हूं परन्तु संवेदनात्मक घाव बहुत गहरे होते हैं और वे जनमानसकों साधारणत और कलाकारोंको विशेषतः बहुत दिनों तक आन्दोलित करते रहते हैं । इस दृष्टिसे यूरोपके नये साहित्यका प्रारम्भ लगभग १९३० ई० से होता है जब प्रथम महायुद्धकी भौतिक क्षतियाँ बहुत कुछ भरी जा चुकी थीं-- परन्तु आस्थाका विघटन धीरे-धीरे प्रारम्भ हो रहा था। महायुद्ध जन्य सबसे बड़ा खतरा संस्कारहीनता डिमो रछाइज़ेदान का वातावरण बरा- बर गहरा होता जाता था । यूरोपियत मस्तिष्कके इसी संघषने वहाँके नवलेखनको जन्म दिया । आदर्शोंका संघर्ष जिसमें कैथोलिसिड्म कम्यूनिज्म तथा ह्यूमैनिज्म जैसे बौद्धिक आन्दोलन सम्बद्ध रहे हैं प्रथम महायुद्धके बाद ही प्रारम्भ होता है । उन दिनों कृम्यूनि्म लगभग एक धघरातछपर फ़ैशन बन चुका था । युद्ककी विभीषिकाने मनुष्यके अध्यात्मको नष्ट कर दिया था और आ्थिक-सामाजिक कम्यूनिज्म ही मानव-कल्याणका एकमात्र साधन दिखाई देता था । कम्यूनिस्मकों फ़ैशन कहा गया है क्योंकि छोगोंने अधिकतर उसे एक प्रतिक्रियाके रूपमें अधिक स्वीकार किया । बहुत कम व्यक्ति ऐसे थे जिन्होंने उसके सिद्धान्तोंको परख कर तथा उनसे सन्तुष्ट होकर इस नव्य-जीवन ह.




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