एतिहासिक लेखमाला | Etihasik Lekhmala

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Etihasik Lekhmala by विजयसिंह गहलोत - Vijaysingh Gehlot

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about विजयसिंह गहलोत - Vijaysingh Gehlot

Add Infomation AboutVijaysingh Gehlot

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
सिह शब्द [ 8 के शिला लेख मे मिलता है तथा “सिह शब्दं लगने लगा । मारवाड़ (जोधपुर) के राठौड़ राजाओं के नाम के आगे तो 17 वीं शताब्दी में राव रायसिंह राठौड़ (1688-40 वि०) से 'सिंह' शब्द लगने लगा । बाद में तो इस तरह के नामों का राठौड़ों में खास तौर से प्रचार हुआ । मुगठकाल में अधिकाधिक प्रचार मुगलकाल में 'सिंह' शब्द का प्रचार बढ़ा ओर राजपूतों के सिवाय अन्य जातियां भी इस शब्द का प्रयोग करने लगीं । 'सिंह' शब्द अब उपाधि नहीं रहा । सिंह का अर्थ अब श्रेष्ठ (सिंह के समान) था, यह्‌ भी लोग भुल गये । सिह' से सम्मान ओौर वहादुरी का अथं समभा जाने लगा । एक तरफ मुगल ओौर यवन अमीर उमरा, फौजवक्षी, सिपहसालार जंग वगेरा अपने नाम के अगे 'खान' लगाते थे वहाँ हिन्दू वीरो ने अपने नाम के साथ सिह जोड़ना आरम्भ किया । सिक्खों के दसवें कांतिकारी गुरू गोविन्दसिह्‌ (वि० सं० 1722 से 1765) ने तो अपने पन्थ (दल) के लोगों के अन्त में सिह शब्द अनिवायं रूप से लगाया । यहीं रिवाज आज तक सिक्ख सम्प्रदाय मे चला आता है ओर वे लोग चाहे जाट, राजपूत, कलाल (अहलु वालिया) आदि से हरिजन (चमार, मोची, मेहतर आदि) तक हो तव भी 'सरदार' कहलाते और नाम के अन्त मे “सिह शव्द जोडते हँ । सारांश यह्‌ है कि पंजाव के सिक्ख ओर राजपूतान के राजपूत क्षत्रियो में.18 वीं सदी से 'सिह शब्द का प्रचार बढ़ा । इसे यथानाम तथा गुण' की उक्ति के अनुसार वीरता का पोषक समभकर दूसरी कौमों के व्यक्ति-विशेषनेभी सिह' शब्द लगाया । जैसे जोधपुर के महाराजा अजीतसिह राठौड़ (वि० सं° 1768 से 1781) के दीवान दिल्ली वाले कायस्थ (पंचोली) केसरीसिह भामरिया, महाराजा अभयरसिह्‌ राठैड (वि० सं० 1781 से 1806) के कामदार (दीवान) ओसवाल वंश्य रतनसिह भण्डारी आदि । 19 वीं शताब्दी के आरम्भ मेँ राजपूताने के उदयपुर, जोधयुर ओर जयपुर राज्यों ने इस “सिह्‌' शब्द को विशेष महत्व देकर राजपूर्तो के सिवा अन्य वणे के उच्च राजक्मचारियों को भी इस शब्द से वंचित कर दिया और जो कोई उपयोग करता उसकी वडी खोज खाज कौ जाती थी। यही नहीं शुद्ध राजपूतों मे भी यदि राज्य किसी को राजद्रोही, गहार (वागी) या ` निम्न श्रेणी (खवास या पासवान) में करार दे देता तो उसे व उसके वंश्जों को भी राज्य के रेकार्ड (कागज पत्रों ) में सिह' शब्द नदीं लिखता था ओर उसे नाम के अन्त में *करण' आदि लगाने को वाध्य करता था ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now