भाषा - शास्त्र प्रवेशिका | Bhasha - Shastra Praveshika

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Bhasha - Shastra Praveshika by डॉ. मोतीलाल गुप्त - Dr. Motilal Gupt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१० मापा की प्रवृत्ति के बारे में याद रखें-- $ (१) माषा चिर परिवर्तनशील है । (२) परिवर्तन प्राय: सीधी रेखा के रूप में है अतः अ तिम स्वरूप नहीं हो सकता 1 (३) सामान्य सिद्धान्त “तो कठिन से सरल की मोर है पर लिखित रूप कुछ विकृतियां उपस्थित कर देता है 1 (४) सैद्धान्तिक रूप में मापा प्रति पग, प्रति क्षण परिवर्तित होती है इसे इस प्रकार देख सकते है । | प्रतिप (समय) 1 | 4 द. + परिवतनशीलता | † | (1 1 ------>-->-->----> -- “> मुल रूप प्रतिपग (स्थान) (यदि कोई रहा हो) प्रकृति तथा प्रवृत्ति दोनों को मिछाले तो सामान्य विद्वेषताओं के साथ मिल कर 'माषा' का पुर्ण स्वरूप उपस्थित हो जाता है । मापा उच्चरित--(लिखित) । दि! । त भाषा का त ६ परिवतेनशील |- प्रवृत्ति | स्वरूप |> प्रकृति ~| अनुकरण द्वारा अजित । | | (८ 4 विशष बातें 1 ~~~ नए व्यक्त, व्यवस्थित, सा्थेक वर्गं की इच्छानुसार अवतो माप डन दो प्रश्नो कां उत्तर दे सकंगे- (१) माषाका स्वरूप स्पष्ट कीजिए । (२) विचारप्रकाशन की क्रिया पर अपने विचार लिखिए । ~~: 9 * ~




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