भारत का रक्षा-संगठन | Bharat Ka Raksha Sangathan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ भारत का रक्षा-मंगठन पर पूति, परिवहन, आपुधसामद्री ( आईनेंस ), और सेन्य निर्माण-कार्य की जिम्मेदारी थी । बह सेन्य-वित्त बनाने के लिए भी उत्तरदायी था । सेन्य-विभाग कौ भूमिका उस समय का मैन्य-विभाग अपने अधिक्ार-क्षेत्र में मौलिक काम तो करता ही था, साथ ही सेना-मुरयालय या चारो मेना-तमानो से सौये हौ आने वाले सभौ प्रस्तावो की स्वतम जाँच भी करता था । फनत अपने समक्ष आने वाने और उसके द्वारा सूत्रपातं किये जाने वाले सभी प्रम्तावी के लिए वह अपने कागज-पन्न रखता था, जिसमे विभाग में छपेक्ित मात्रा में सातत्य बना रहे । विभाग में तीन प्रभाग थे, अर्यातू सैन्य, प्रशासन और वित्त । बरित्तश्रभाग महानसाकार, सेन्प-विभाग के अधीन था, जो सभी सेन्य और नौसंनिक मामलों मे भारत सरकार का वित्तीय सलाहकार था । दूसरे शब्दों में वित्त-प्रमाग मैन्य-विभाग का हो एक रग था) नवे लिखे आरेख में सारा ढोचा स्पप्ट हो जाता है 1 आरेख-१ सपरिपद्‌ गवनंर-गनरल [यश सेना रदस्य, सेना कै प्रणासनिक कायं के कमाढर-इन-चीफ, वमान गौर लिए जिम्मेवार, भारत सरकार का कायंपालक कायं के लिए जिम्मेवार प्रत्िनियित्व बरने वाले और उसके आदेश जारी करने वाले ॥ एडनर्टेद ववार मास्टर प्रधान चिकित्सा मेन्य विभाग का सचिव जनरल जनरल अधिकारों नर व भारवे मम्भरण भौर देन्य निर्माण वित्त के आइंनेंस वे. परिवहन के. ार्योके उपसचिव महानिदेशक मटानिदेशक महानिदेशक ऊ उस समय अपनायी जाने वालो कार्यविधि यह थी कि सेता-कमानों या. मेना-मुख्यालय मे घतो वाने महत्वपूर्ण मैन्य-मुवार या व्यय को अन्तप्रेस्त करने वाते सभौ प्रस्ताव सैन्य-तेसा- नियन्धरक बे जरिए सेन्य.विमाग को भेज दिये जाते थे । फिर मैन्य-विमाग में इनकी वित्तीय बौर प्रशासनित्र, दोनो हो दृप्टियों से जाँच की जाती थी । जो श्रस्ताय सेना-मदस्प द्वारा अनु- मोदित हो जाता था, उसे वित्त विमाग को भेज दिया जाता था और अगर दित्त-विमाग भो मान लेता था तो उस मामते को अनुमोदन के लिए गवर्नर जनरल वे पास भेज दिया जाता € इस पद को बाद ( १६२१) में इजीनियर-इन-चीफ नाम दिया गया !




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