राजनीति - विज्ञान के मूल सिद्धांत | Rajneeti Vigyan Ke Mool Siddhant

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Rajneeti Vigyan Ke Mool Siddhant by नवीन नारायण - Navin Narayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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1 राजनीति-विज्ञान की परिभाषा, स्वरूप रौर चत्र जहाँ तर दो सके विज्ञान में परिमापा की श्रादश्यकता होती है । यद्यपि जनता मे प्रचित प्रयोम बहु श्रस्पषप्ट तथा चुटिपूर्ण होते है, पर देज्ञानिक श्रीर लेप प्रचलित श्रयों में तभी श्रतर आने देना चाहिए जब इसके हिना काम ही ने चले । सार. एन. मिलक्राहस्यं 1. विषय-प्रवेश पाश्चात्य राजनीतिक चितन दा प्रारम प्राचीन थूनान से हुआ, फिर भी स्तातवोत्तर ज्ञान के रुप में *राजनीति-विज्ञान' अपेक्षाकृत नया है । इसका बहुत बृ वित्रासं दिखले 75 वर्षों मे हुआ है । इसके पूर्वे, राजनीतिक अध्ययन और चिंतन केवल शासक-वर्ग, राजनीतिज्ञो, दाशनिकों और लेखको तक ही सीमित था । राजनीतिक मामलों में जनसाघारण की वोई पहुँच न थी मौर वै स्वय मी राजनीति” और 'राजनीतिव चितन' की थावद्यक्ता न समभते थे । लोगतत्र बौर राष्ट्रीयता की उमडती हुई लहरों ने राजनीति-विज्ञान वी ष्म अनन्पता (<्ल०७। ५९०९5). का अत कर दिया. धिशाके प्रसार. मौ 'राजनीतिव चेतना फ़ विकास के कारण सावंजनिक विधयो मे जन्चाधारण की रुचि बडने लगी, सौर आज स्यिति यह है कि कोई भी राजनीतिज्न था विदारक लोकहित वी सर्वथा उपेक्षा नदी कर सक्ता! अव लोकमत (ण्छी ०0) का. वोलवाता है ; अतः सरकार भौर विभिन राजनीतिक दल तरह-तरह से उसे प्रभावित वरने के प्रयास में लगे रहते हैं । सभाएँ बौर




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