नया समाज | Naya Samaj
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
165
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)फरवरी, १९५५
सारे मुल्कमे तरह-तरहके उद्योग-धन्घोका एक जाल-सा
विछ जाय। हालाँवि' सरवारी पक्षको समाज और जर्य-
नीतिके किसी भी क्षेत्रमे प्रवेश करनेकी पूरी आज़ादी रहेगी,
लेकिन अभी काफी समय तक ऐसे हालात पैदा नही हो सकते
वि राष्ट्रीय अर्यनीतिके सब क्षेत्रोमें केवल उसीका एकाघि-
पत्य हो । मसलन खेंतीके सबसे वडे उद्योगकी जननी वसती
ज़रूरी तौरपर गैर-सरकारी हायोम ही रहेगी। इसी तरह
छोटे उद्यौग-घन्षे भी ज्यादातर नं र-्रकारी हाथोमें रहग,
हालाकि उनका सहयोगी अष्धारपर सुघ्यवस्यित्त होना
जरूरी है। यहीं वात दूसरे छोटे उद्योगोंके वारेमे भी लग्
है। कुछ बड़े उद्योग-घरघोको भी, अगर सरकार उनकी
ज़िम्मेदारी अपने ऊपर न लेना चाहे, तो गर-सरकारी
हाथोमे सौंप देना फायदेमन्द ही होगा ।
जब वस्तुस्थिति यह है, तो हमें गैर-सरकारी पक्के प्रति
एक स्वस्थ दृष्टिकोण अपनाना होगा और साथ ही अपन
समाजवादी व्यंवस्थाके लक्ष्यकी पूत्तिका सदा ध्यान रखते
हुए किसी ऐसी प्रवृत्तिको पेदा नही होने देना होगा, जो कि
आगे चलकर हमारे म्गेमें वाघक वन सके। इस तरह
सरकारी सौर सुंर-सरकारी उद्योग-धन्घोकों साथ-साथ
श्वल्मेवा एक परिणाम दोनोमें एव तरहकी स्वस्थ प्रतियो-
शिता भी होगी । यदा इमे यह् वाठ हमेशा याद रखनी
चाहिए कि अर्यनीतिका जो वडा खाका हम तैयार कर रहे
है, उसकी कसौटी हमेशा अधिके उत्पादन ओर अधिके वाबारी
ही होने चाहिएँ ।
साथन-सामप्रीका सदुपयोग
मेरा यकीन है कि हम छोग अपने देशमे एक बहुत बडे
निर्माण-कार्प झौर कांप्रेसजन
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जौद्योगिग' विकासकी शुरूआत कर रहे हैं। इसके छिए
हमें अपनी सारी साघन-सामग्रीका भरपूर उपयोग करना
होगा और किसी भी चीज़कों बेकार नहीं खोना होगा ।
इसका आिक पहलू तो महत्त्वपूर्ण है ही, कितु इससे भी कही
ज्यादा महत्त्वपूर्ण हू जौद्योगिक-क्रान्ति लानेके लिए सुदिक्षित
और सुदक्ष व्यक्ति 1 मुझे खतरा यहीं दिखाई देता है
कि सुदक्ष व्यव्तियोका कमीकी वजहसे हमारे औजौद्योगिक
विकासकी गति कही धीमी न पड जाय। हमारे पास
मानव-दाक्ति कापी है--और बभी-कभी तो मानव-शक्ति
पूंज, तकरकी जगह भी ले सकती है। लेविन दिना सुशिक्षित
मानद-रक्तिके हम उयादा दूर नहीं बढ सबते। इसलिए
हमें अपने प्लानिंगमे पहलेसे ही यह तय करना होगा कि
सभी राष्ट्रीय प्रबृत्तियोके लिए काफी सब्यासें लोगोको
शिक्षा दी जाय ।
वडे-वडे उ्योग-घन्योकी हम चदे जितनी मौ तर्वकी
क्यो न वर ले, लेकिन उतना ही शोर और व्यापक विकासकौ
चेष्टा हमे छोटे-छोटे उद्योगो शौर कुटीर शिल्पके छिए भी
बरनी पढेगी। कंग्रेसने हमेशा ही घरे उथोग-षन्धो
बौ तरबर।की माँग की है। आज तो उनकी तरककीकी
जरूरत ओर भी उ्यादा है, क्योवि बिना इसके न तो सारे
बेकारोको काम ही दिया जा सकता है और न कुल उत्पादन
हौ वडाया जा सकता है। मेरी रायमे तो बड़े और छोटे
उयोग-घन्धोमे विसी' मी तरहका बुनियादी सर्प नहीं है,
थदत्ते कि उन्हें उन्नत वरनेका हमारा ढंग सतुलित और
सुयोजित हो... ( अंवाडी-काग्रेंसको पेश की गई रिपो्टसे )
निर्माण-कार्य और कांग्रेसजन
धीमती सांविज्री निगम (सदस्या, राज्य-सभा )
हम सभी जानते हैं कि हमारे नवनिर्माण-यज्ञके दो ही
वडे शत्रु है--प्रतिक्रियावादी राजनीतिक दलं तवा देदा-
बासियोमें बढती हुई चारिनिक दुषेठता। किन्तु खेद
यह् है कि देशमे माज काग्रेस-जेसी महान् ऐतिहासिक एवं
प्रतिष्ठित राजनीतिक सस्थाकी उपस्थितिमें ये दोनो दात्र
सिर कसे उठा रहे हैं? काग्रेस-जेसी सस्थाके, जो युग-
लिर्माता गाँधीजोीवी गोदमे चरी ओर जव देके सच्चे जन
नायद' एवं हुदय-स प्रार नेदल्जीङ पूर्णं बत्सन्यकी अधि-
कारिणी तथा जनताको श्रदाक्ता पात्र होते हुए भी
प्रतिक्रियावादी उचक्कोंके फुसलावेमें जनताका आं जाना
या हमारी आपसी फूट, ईर्प्या, हेंप तथा गुटवन्दीकें कारण
उत्पन्न उयल-पुयख सौर रचतात्मक कार्योमिं रुकावटें--
ऐसी वस्तुएं नही हैं, जिनकी हम यो ही उपेक्षा करें ।
दलबन्दि्पोका दुष्परिणाम
अच प्रन यह् उञ्ता है कि आखिर दोपोकी गठरी हम
किसके सिरपर रखें--अंपने या सस्याके अथवा नेताओके
ऊर? कुछ थी हो, यदि हम गणतानिक परम्परामे विदवास
रखते हैं और अपने तया दूसरोंके साथ न्याय करना चाहते
हें, तो हमें सबसे पहले यह गठरी अपने ऊपर हो रखनी
होमौ, क्थाकि सस्या तया नेता दोनोमे ही शक्निं एव जीवन
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