श्री भागवत - दर्शन भागवती - कथा भाग - 43 | Shri Bhagawat - Darshan Bhagavati - Katha Bhag - 43

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Shri Bhagawat - Darshan Bhagavati - Katha Bhag - 43  by श्रीप्रभुदत्तजी ब्रह्मचारी - Shree Prabhu Duttji Brhmachari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रासलीला और धमे सयोदा १५. ज्नावी है; बड़े बड़ों से हो जाती है, किन्तु उस भूलकों भूल क्षमम्ध्कर उसके लिये पश्चात्ताय करना--प्राग्रस्वित्त करना- यह्‌ उन्नततिका लक्तण है। पाप करके उसे छिपाना, गर्व करना श्रोर झनेक युक्तियों से उसका समर्थन करना, यदी पतनका निप्क- पटक राजमार्ग है. । कुछलागों का कथन है कि इस 'झनाचर कदाचारका मूल कारण है रासपंचाध्यायी । यदि इस ॒रासपंचाध्यायाको दीः भागवतसे निकाल दिया जाय, तो सव भंमट दूर दो जाये | इस रसीली कामवर्घेक कथांकों ही पढ़कर लोगों की ऐसी श्रवृत्ति | होती है । ६ यहुतो वही घात हुई कि नाकपर मक्खी श्राकर वैठती है इस लिये नाकको ही काट दो । ईश्वरके कारण ही अनेक मतमतांतर ष्ठति है, इसलिये ईश्यरको ह मिट दो । धर्मके नामपर ही कलदः होती द, श्रतः धर्मको ही तिलाञ्जजिदे दौ! ईश्वर धर्मो कोई मिटाना भौ चाहे, तो नहीं मिटा सकता । इसी प्रकार श्रीमद्‌ भागवतमें से रासपद्चाध्यायी निकाली ही नहीं जा सकती } वही तो मागवतके पंचप्राण हैं । रासपंचाध्यायी के पढ़ने से काम भावना की ब्ाद्ध नहीं होती, श्पितु कामवासनाका शमन होता हैं । मेने पाठटकोको व्यालीसवें खर्डमें अश्वासन दिलाया था, कि मै इस सम्बन्यर्मे अपने जीवनकी एक सत्य घटना सुनाउँगा उसे 'चोवालीसवें खरडमें पाठक पढ़ें । भगवानकी रासलीला एक आत्मरमणुकी लीला है। वह सके से नहीं जानी सममही जा सकती । रासपंचाध्यायी का नित्य श्रद्धासे पाठ करने से ही जानी जा सकती है । रासके नामपर कदाचार करने ` व्यक्तियों का उल्लेख करना भी पाप है, पदिद्र कार्यों के सदासे स्वार्थी लोग श्वनावार करसे श्याये हैं कर रहे शांगे करेंगे । जिसका जिससे सख्ाथं खथता दै ..




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