श्री भागवत दर्शन खंड ८३ | Shri Bhagwat Darshan [ Khand - 83 ]
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
512 KB
कुल पष्ठ :
33
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्री प्रभुदत्त ब्रह्मचारी - Shri Prabhudutt Brahmachari
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १५)
जिस वात का भयथा, वही हुआ, हमसे स्यात् णक कों
छोडकर सब अचुत्तीण माने गये । हमें अनुत्तीण होने का उतना
दुख नदीं था, समस्या यह थी, कि दोपहर का भोजन कहाँ
मिलेगा ।
सपने कहा-'“राजा के चगीया मे एक अनक्षेम हे वहाँ
सबकों भोजन मिलता हू ।” वहाँ दम सब लोग गये, किन्तु वहाँ
सबको भोजन नहीं मिलता था, कुछ नियमित सरया मे लोगो की
भर्तों होती थी । जिसकी भर्ता दो जाती थी, उसी को मोजन
मिलता था । हमारे साथियों में से कुछ की तो भर्ती हो गयी,
हमारी नहीं हुई । बडी नियशा हुई । सबके सामने भोजन परसा
गया, मै सामने बैठा दुम टुम देख रहा धा बालक दी ठय,
परदेश की बाते भूख की प्रचलता, मँ श्रपने को रोक न सका
श्मौर रोने लगा । तव भरती करने वाले फो दया श्चा गयी उसने
सके मी पिठ दिया । मोजन करके द्म सव पुन्, विना टिकट
गाडी में येठ गये और मथुरा जकसन पर उतर पढे फिसी ने कुछ
पूछा ही नहीं ।'”
भ र ४१
इस प्रकार मेंने अपने जीवन में श्रलुमव किया दे अन्न ही
जीवन हे, श्रनदान् का चरथं दै जीवन दान इसीलिये छादोग्य
उपनिपदू में लिखा हे--
बल से भी उत्कृष्ट अन्न दे । ( क्योफि शन्न के तिना यल
आता दी नहीं । ) इसीलिये यदि कोई दश दिन भोजन न करे, तो
परह् जीपित भी रह जाय, तो भी उसी देखने की शक्ति, सुनने
की शक्ति, मनन करने की शक्ति, समकने की शक्ति, विशेष ज्ञान
की शक्ति तीण दो जाती दै । वही पुख्प यदि भोजन करता दैः
User Reviews
No Reviews | Add Yours...