मन रे मन ही में रम | Man Re Man Hi Main Ram

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Man Re Man Hi Main Ram by गुलाबचंद वैद - Gulabchand vaid

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गरमी ने श्रनलाए्‌ कौ क्या चाहिए ? उरी छाया, मीठा पानी । शरण में ग्राया, रहें निगरानी 1! तुम कल्यत्तर की छाया । में पथिक ताप मुरकाया शरण तुम्हारी पाजाने भटकत भटकत हू श्राया नू ज्ञानी मैं भ्रज्ञानी । न तो किस्सा नहीं कहानी मेरी श्रादत है वचकानी 111 ॥ भेह मूषर का वासी! तृष्णा मेरी है प्यासी जनम जनम से प्याऊ हू ढत श्राई अधिक उदासी जल धीनल-मृदू पिलादों मुरमे दिल को सरसादों तेरे लिए सब है श्रासानी ॥ 2 ॥ मे तो साधारण प्राणी । तुम हो महान वरदानी तुम दाता याचक मैं तेग, स्थिति यह लगे सुहानी पुरी हो सभी जरुरत, ग्रति दूर भागती किल्लत श्रटचन वाधा हो लचखानी ॥ 3 ॥\ नमनारम-घोट पिलादो } या सकट कपु मिटादो चन जाए गति प्रगति श्रसली मजिल सह मिलवादो सच्ची है यहीं सफलता, पाजाऊगा अरलवत्ता कोई फिए विना कुर्वानी ॥ 4 ॥ सुफनिन होवे जिर खाया व युणयायवः ह्र स्‍वासा सुपर जीयन का हो जाए, साहू यहीं टिलासा अमरन-घयलना पाऊ, सरमय सो सफन बलाऊ ग्रचस्थिनि यह ही लायानी 1511 {5 }




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