श्री हरिमद्राराचार्यस्य ममयनिर्णय | Shriharibdrachayasy Samayniranay Part-ii
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
881 KB
कुल पष्ठ :
29
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रष हरिभेषाचा्बस्व-~
ब्राह्मणा:-- बोदाः-- मेनाः--
अवभुताचायः । कृक्राचार्यः । अलजितयज्ञाः 1
आसुरिः । दिवाकर (?)1 उमास्वाति ।
इष्वररष्णः | दिप्नागावार्यः | जिनमद्रशमाश्रमण ।
कुंमानिलः । भमंपाल: । दबचाचकः ।
धतज्ञ लिर्भाष्यकार । धर्मकोर्ति । भद्रबाहु ।
पत ज्ञलियोगाचार्य: । धर्मतरः । मलबादी ।
बाणनिर्वेयाकरण । (+ समन्तभद्र ।
भगवेद्रोपन्ध । भदन्तदिन्न । सिद्धसनदिवाकर ।
भर्तहरिवंयाकरण । बनुबन्वुः ।
बिन्ध्यवामा । शान्विरतित ।
निवधर्मोत्तर । झुभगुम 1
( १ ) अम्यां नामावल्या वेयाकरणमर्तृहरेगपि 1निदेशो दृश्यत । अस्य हि पहिया करणस्य नामयय
इरिभडेण ' अनकान्तजयपताकायां ` द्विजषु म्थन्टेषु स्मूनम, उद्रनानि च ' बराक्यपदाय नामकात
भसिद्ध तदोयग्रन्थात कानिचित् पद्यानि । तथा हि- -
( 1 ) आह च क्षब्दाशतत्वविद [ भतहरि -का |
“ वाग्ुपता चदृन्करामटवकाधम्य आश्वनौी । न भक।श पारत सा हि अस्यवपर्शिनी ॥।
न माऽसम्नि भरन्यया द्धक य जन्दानुगमट्त 1 अनुव्िद्धापच बनं मवे अन्दन जयन ॥ इनि
{ 2) उक्त च भ्ृहरिणा- “ यथानुवाकः का त्रा >ति
गवृ एय सप्तपञनाग्यनरभाग भारनश्रमणक्ार्गि ` टन्मिग ' नाम अयस्प चोनदेशवाम्तिल्यस्य 4.
कथनानुलारग, अध्यप्क-कालनाःय-तापु-पाठरकमहादायन प्वान्दरस्वन् ` भृ 4). . +
इत्यनन्नापक आग्ट भाषानवद्ध निचन्द, ` यनृहरपृन्वुममयः पश्चाजदविकषटशवानमं । ५५८ ।
गष्टाब्द् ( ६९२३-४ विक्रमन्द । सपमा म्थिर)्न । नतव निबन्ध पुनः, मतृहरिकरन-०।चद-
पदप -गतविचर णि नन््रवार्पिकनाःख प्मिद्र ग्रन्थ अनेक ग्बण्डटनन्वान नन्कतुमदःमा के ५
कुमारिटस्यापि समरन ( ७०० ) तमग्बषठाब्टानकर विद्यमानन्वं [नणीनम ।
उतश्च-हरिमद्रण स्वकृत ` शाखवानाममुचय ' नाम फग्रन्थस्य चतुयम्तबकगतम्य -
३७ अनकान्तजयपनाकरा । अहमदावादर मुद्रा ) १, काइया सु उत बाक्यपदाय प८ ४९ - $
उपरि डम्व्यस 1
३८ वाक्कपद्रीय मम्प्रूण भठोक एनादडा --
५ यथानूवाक्र. श्याक्रा वा मादन्वमुपमच्छाति । आव्न्या, जद ५ द्र प्रवादय सस््वते ' इ॥”
ड मर राग ए मानर्बा> ज~ पु. ८-, प्र. -१३- $
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