पन्त आधुनिक कवि | Pant Aadhunik Kavi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
294
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)झाघुनिक कवि ११
कौन-कौन तुम परिहत वसना,
स्लानन्मना सू पतिता सी,
घूल धृसरित, मक्त कु तला
किसके चरणौ की दासी?
>€ ज
विजन-निशा मे किन्तु गले तुम
लगती हो फिर तस्वर के
श्रानन्वित होती हो सखि !† नित
उसकी पषद-सेवा करके 1“
इस काव्य मे रहस्यात्मक संकेत, प्रतिविम्बवाद, प्रकृति श्रष्करुन के साथ-
साथ विश्व-प्रम, प्राथंना श्रौर ्रात्म निवेदन सम्बन्धी रचनायें ह ।
२ ग्रथि-यह जनवरी २०मे, अतुकात छन्दमे लिखी गयी एक
प्रणय-गाया है । बीणा का आशावादी कवि प्रस्तुत कविता मे निराशावादी
हो गया है । कथा बडी सरल श्रोर सीधी है । नगेन्द्र जी के शब्दों में यह केवि
की कहानी है । जब तारुण्य का वालं रवि उसके प्राणो को पुलकित कर रहा
था, उसी समय मघ्-बेला माग्य ने उसके हृदय मे एक प्रथि डाल दी जिसे
वह कदाचित् रमौ तक नही खोल सका है । बहुतो से सुनाहैकिग्रथि पृतजी
के श्रपने श्रनुमव पर ्रावृत है जिसमें उन्होने अपनी प्रणय कहानी
लिखी है ।”
इस कृति मे प्रेम की परिभाषा, प्रेम के अनन्तर की स्थिति आदि सभी
का वर्णन बडी भनौरम शैली मे किया गया है । प्रीति की रोति बताता हृश्रा
-कवि कहता टै-
“यह श्रनोखी रीति है कया प्रेम की,
जो अपागो से अधिक है देखता,
दूर होकर श्रौर बढता है तथा,
वारि पीकर पूता है घर सदा ?
जब हृदय विध जाता है तब की स्थिति का वर्णन देखिये--
प्रम ही करा नाम जप, जिसने नही,
रात्रि के पल हों गिने, प्रति शब्द से,
चौंक कर उत्सुक नयन जिसने उधर,
ह्यो न देखा-प्यार उसने क्या किया?”
३. पह्लव-- पल्लवः पत की सर्वोत्तम रचना है । बे स्वय कहते है--
पल्लव मे मैने १६१८ से १६२५ तक की प्रत्येक वषं की दो-दो तीननतीन
कृतिया रख दी है जिनमे से भ्रधिकाश “सरस्वतीः तथा श्री शारदा मे समय-
समय पर प्रकाशित हो चुकी है ।””
न पत्रों का मर्मर सगीत,
न पुष्पो का रस, राग, पराग,
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