समस्थान सूत्र सार्थ भाग - 5 | Samasthan Sutra Sarth Bhag - 5

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Samasthan Sutra Sarth Bhag - 5  by मनोहर जी वर्णी - Manohar Ji Varni

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about मनोहर जी वर्णी - Manohar Ji Varni

Add Infomation AboutManohar Ji Varni

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
समम्धानतूत्रपयमसं (१) ग्रहण करता है, तो उसे दूतकर्म नामक उत्पादन दोप का भागी होना होगा | ३ निमिच उत्पादन दोषः- व्यंजन रंग खर्‌ शादि आठ प्रकारे निमिति भत्ता [ आहारादि ) निरभिच नामक उत्पादन दोष है । ४ छाजीवक उत्पादन दोप :--- जाति, कुल, शिल्प कर्म, तपकर्म ईश्वरस्वका कथन कर दाताको शरोदार देने केलिये तत्पर करना ाजीवकनामका उत्पादन दोष है । ५ वनीपक यचन नामक उत्पादन दोपः- कुरो, कषण प्रतिथि, बा, पाखंडि, धमण , इ श्ादिक॑को जो दान दिया जातां है ससे, हे मर्हीराजः पुण्य होती है यौ सीं १ दायके द्वीरारेसा पं ह जनेर्‌ चतर देनाप्रि पए होता दै,, श्रौर इस प्रकार दान देनेबारोफे यहाँ उपरे प्रति झंगुकूल बचन कहते हुए यदि मुनि या पात्र थ्रादार ग्रहण करता दै तो बह बनीपक नामंके उत्पादन दो पका ' भोगी होगां । हर ६ चिकित्सा नामक उत्पदिनं दोपः झाठ प्रकार की चिकित्मा शास्त्र धारा दाताका उपकार फर्‌ उस यहाँ थाहार आदिकको जो प्रश्ण कता है बह धिरिः रषा नमिक दोपका भागी होता ई | ७ क्रोध नामक उत्पादन दोपः- करोधको दाते




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now