ब्रह्मचर्य | Brahmacharya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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देवॉका अद्षावतार । १५ ५८१) उसमे सब देव दैवीदाक्तियो सहित प्रविष्ट हे । (८२) जो के देव हैं वे सबउसमभें आश्रय लेते हैं। (३) यह ( शरीर रूपी ) चमस है, इससे देव अमृतका पान करते हैं, इससे अमृत पीकर सब देव हर्षित हों । ” इनमेंसे दूसरा मंत्र परमात्माके विषयमे विरेषतः है । परतु जो देवादिकोके संनधकी व्यवस्था परमा- त्माके वर्णनमें आती है, वही अशरूपसे अल्पप्रमाणमं जीवात्मामं घटती हैं । यह बात वेदमें सर्वत्र है । उदाहरणके लिये पंचमहाभर्ते: काही उदाहरण लीनिये । जगतमें जो पंचमहाभत हैं वे परमात्माके आधारम हैं, इसी प्रकार पंचमहामर्तोके जो अंश इस शरीरम हैं वे सब जीवात्माके आधारसे रहते हैँ । सर्वत्र यही व्यवस्था होनेके कारण किसी स्थानपर्‌ परमात्माका वणेन हो अथवा नीवात्माका वणेन हो, उनका सामान्य अर्थ दोनों स्थानॉपर लगता है । इसी रीतिसे इस ब्रह्मचारी सुक्तके कई मंत्र जीवात्मापरमात्माका बोध करा रहे हैं, इसका कछ वर्णन इस ठेखमें पिरे बताया है, ओर शेष वणन सुक्तकी व्याख्यामे क्षिया जायगा । इस प्रकार शरमं देवताओंका अंशावतरण हुआ है ओर इस शारीरम सन देव रहते है, यह वैदिकं सिद्धांत निश्चित रीतिते सिद्ध है । तथा-- देवाः पुरुषे आ विहान्‌ } अथव. ११।८१३; १८, २९। * देव पुरुषमें घुसे हैं । यह वाक्य अथर्व ११।८ में तीन बार आगया है। इस सक्‍तमें तो मनप्य शरीरका ही वणन है तात्पय “ शारीरमें देवोंका प्रवेश हुआ है, और सब देव हमारे




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