नवमानववाद स्वातंत्र्य और लोकतंत्र का दर्शन | Navamanav Vad Svatantry Aur Lokatantr Ka Darshan

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Navamanav Vad Svatantry Aur Lokatantr Ka Darshan  by वी॰ एस॰ तारकुण्डे - V. S. Tarakunde

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मानववाद का सामाजिक उद्देश्य स्वतन्त्र एवं नेंतिक स्वरी-पुरपो के समाज कौ रचना में सहायक होना है। इस लक्ष्य के अनुरूप मानववादी एक सम्पूर्णतः लोकतन्त्रीय समाज की स्थापना एवं उसके अनुरक्षण के प्रति सचेष्ट रहता है। मानववाद को अहसारा है कि लोकतन्त्र को समाज के केवल राजनीतिक संगठन तक सीमित नहीं रखा जा सकता तथा स्वातन्त्य, समानत्ता एवं बन्घुत्व के लोकतस्त्रीय भूत्य का सामाजिक जीवन के सभी आयामो ने प्रसरण होना आवश्यक है ।. वस्तुओ के उत्पादन व वितरण तथा वित्तीय सेवाओ, दक्षणिकं सस्थानो, विविध जनसमूदायौ के सम्बन्ध आधारो, स्त्री-पुरुप एवं भिम्न आयु वर्ग के दरों के भन्तस्तम्बर्पो आदि मे इन मूल्यो का पूणं प्रतिविम्बन वास्तविक लोकतत्व की कसौटी दै} इस प्रकार के सर्थव्यायक बहुआयामी लोकतस्त्र की स्थापना तभी सम्भव है जब इसकी पृष्ठभूमि में समाज में सार्वमूलक परिवर्तन लाने, एक समग्र सास्कृतिक एवं सस्थागत क्रान्ति उपस्थित करने के प्रति गहरा रुझान हो! अपने चारो ओर निर्नता, भज्ञान एवं अत्यधिक असमानताओ से घिरे रहने पर भी यदि मानव वादियों की नैतिक चेतना उनमे इस वात को व्याकुलता नहीं भर देती कि वे इस क्रास्तिकारी प्रयहन मे साकीदार हो, तो वे अपने दर्शन के प्रति ईमानदार भी नहीं हो सकते ।. इन परिस्थितियों में मानववाद को नवमानववाद, एक सावं मूलक क्रान्तिकारी मानववाद बनाना होमा । नवमानववाद में राज्य की जिस रूप में परिकल्पना की गयी हैं वह साझेदारी का लोकतन्व होगा जिसमे सत्ता जनता में निहित होगी, केवल कुछ ब्यक्तियी के हाथों में केन्द्रित नही रहेगी । यन्‌ एक परिवार - सदश सहयोगी परिमण्डल होगा जिसमे प्रत्येक व्यक्ति को उपयोगी काम दिलाया जायेगा तथा आधिक असमानताओ को कठोरता से परिसीमित किया जायेगा । नवमानवयादी इस धारणा के साथ नये परियतंन के जाकाक्षी होगे कि किसी भी सामाजिक क्रान्ति के प्रतिफलित होने से पहले सास्कृतिक परिवर्तन होना जरूरी है। नवमानवदादियों का मुख्य कार्य होगा कि वे जनता को लोकतस्तीय मूल्यों स्वातन््य, समानता, विचेक, सहयोग, आत्मानुशष।सन के प्रति जागख्क बनाये तथा इन सुल्यो पर आधारित उचित सस्यानो का प्रतिष्ठापन करे। नवमानववादी अपनी घारण[ के वास्तविक लोकतन्त्र की स्थापना के लिए प्रयत्नः शील रहते हुए राजनोतिक दल के रूप में सगठित नहीं होगे तथा सत्ता की राज नीति में भाग नही लेंगे । ये जनत। के पय-प्रदर्धक, मित्र एवं दार्शनिक के रूप में कायं करेगे । उनका राजनीतिक व्यवहार सदेव विवेक पर आधारित अत. १




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