हिन्दी कृष्ण - काव्य में रूप - सौन्दर्य | Hindi Krishn Kavya Men Roop - Saundary

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१६ मे सौदय बे मुख्यत तीन भेद कलात्मक, मानवीय प्रर तटस्य (प्राकृतिक) सौदय-किये गये है । इन तीनो मे मानवीय सौतय वी मीमासा करना ही इस प्रवघ वा प्रमुख ध्येय है । इस सोन्दय के विभिन्न स्वरूपा पा बिवंचन शास्त्रीय झाघार पर किया गयां है । मानवीय सौ तय मे सौदय वे उद्दीपन के मुख्य चार माध्यम स्वीकार किय गये ह । गख, चेष्टा, भ्रलङृति श्रौर तटस्थ साधनो सेश्रालम्बन के बड़े हुए सौदय को देखने की चेप्टा वी गई है । मानवीय सौदम के बाह्य प्रौर श्रान्तरिक तत्त्वा वा विष्लेपण किया गया है । इन सभी ग्राघारो पर मानवीय सौ दय के विश्तेपण की एव समुचित कसौटी तयार हो जाती है । चतुय श्रीर पचम अव्यायाग्र रूपसौदय का यावहारिक पक्ष ग्रहण किया गया है । मध्यकाल के दो भेर भत्तिकाल श्रौर रतिकाल करके दोना में रूप सौदय व देखने वी चेप्टा वी गई है। चतुथ प्रध्याय में भक्तिकाल के जिस रुप सी दय का विवेचन हुमा है उसका श्राघार तृतीय श्रथ्याय मे स्थापित सिद्धात ही है। उठी सिद्धाता को निसप वनाकर भक्तिकालीन कृष्णा साहित्य का यावहारिक पक्ष प्रस्तुत करते हुए बत्ताया गया है कि इस युग की 'रचनाम्रा म रुप सोदय दिन किन रूपा मे उपलबघ है । अपने विचार की पुष्टि मे भक्त कविया कौ रचनाम्रा मसे पूप्वल उदाहरण देत हृषु विषय विष्नेपण एव विज्चन को ग्राह्य वनामा गया है ! मुस्यत वल्लभ सम्प्रदायबे श्रष्टदछाप के कवियो तथा राघावल्लभ सम्प्रलायवे अनेक क्विया की रचनाभ्रो मसे उलाहरण दिये गय ह । इन दोनो सम्प्रायाके स्पसौदय निरूपरा म प्रमुख भेद यह है कि प्रथम मे श्रीकृप्ण के रूप-सीदय की महत्ता और द्वितीय में प्रधान पद राधा को प्राप्त है, जिसे रसेश्वरी मानकर उनके रूप का भ्रनुपम मोद पौ-दय वसित हृश्रा है । प्रदर उदाहरणा द्वारा इस विचार वी पुष्टि की गई है । इस काल मे खद्धार का जो स्वरुप विन हुआ है, उसी को प्राधार मानकर परवर्ती रीतिकालीन कविया न सामयिक प्रवृत्तियो के भ्रनुकूल श्रपना वाव्य प्रस्तुत विया है । 'रीतिकाल क॑ रूप सौ तय का निरुपण पचम अध्याय मे हुमा है । इस श्रष्याय में भी तुनीय भ्नवाय मस्यापित सिद्धाता वा ही श्राघार लिया गया दै । सामयिक सामाजिक विशेपतान्ना कं कारण रुप सौदय निरुपस वी भावना मे परिवितन श्रा गया या । इन परिवता वा ययस्यान निर्देश कर दिया गया है । मक्ति विपयक प्ाध्यात्मिन भावना दे उच्च स्तर से गिर जाने के कारण रुप सीदय निरुपण वा भक्तिवालोन भाव क्विया मन रह ह यया दास्य एव सर्य भाव कमै गहनता लगमग समाप्त हो मयो । चषा ५




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