श्री उत्तराध्ययन सूत्रसार भाग - 1 | Shri Uttara Adhyayan Sutrasar Bhag - 1
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
528 KB
कुल पष्ठ :
50
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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पद (११) सिज्जा ( शय्या ) परिषद (₹२) झकोस ( झा-
क्रोश ) परिपह (१६) वह ( वध ) परिषद (१४) जायण
( याचना ) परिपद (१५) लाभ (१६) रोगपरिपह
(१७) तणफास (तणस्प्णं ) परिपद् (१८) जल (मल )
प्रिह (१६१ सकार पुरकारं (सत्कार पुरष्फार) प्रिपह
८२० ) पना (मरता) परिपह (२१) थन्नाण शन्नान
परिप (२२) दस्य दफन श्रद्वापर्िपह-
इस २२ परिपद् याने कए साधु फो भावे ते षद्
घुण्यात्मा पैयता धारण कर समता ते सहन करे न दाय
दाय करे न दीनंता लावे न अत्याचार करे न श्रनाचार
सेवे न दुराचार स्वीरार करे सफ यौ चितवन फेरे
मैंने पूर्व में जो कृत्य किये थे उसका फल भोग रहा हू
इस लोफ में भी जो कृत्य फिये हैं उनके योग्य ठड शिवा
सन्मान राजादेषाद तो जो शनं श्त्याचार पूरे
किया है वो पिन भोगें कैसे छूरेगा ? धर जो तरून
चीज पिले तो झद्वार न करे न उस में रक्त दोवे न
दूसरा यो सतावे न चारिन धर्म से पतित्त दोवे इसलिए
दूरे अ ययन के श्रम्त म यद गाया रै क~~
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