रामलिंग | Ramaling

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Ramaling by पुरसू बालकृष्णन - Pursu Balkrishnanसुमति अय्यर - Sumati Ayyar

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सुमति अय्यर - Sumati Ayyar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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2 उनका जन्म दक्षिण भारत क तमिलनाड मे चिदम्बरम जिले के उत्तर-पदिचम मे पंद्रह किलो- मीटर की दूरी पर स्थित मरुदूर नामक गांव में पांच अक्तूबर सन्‌ 1823 को रामलिग का जन्म हुआ । पिता रामय्या पिल्ल, जो हैव वेलाल समुदाय के थे, गांव के मृ और अध्यापक ये । उनकी मां चिन्नम्मे, मद्रास के पास चिगलपेट जिते क पोन्नेरी अंचल के चिन्नकवनम गावकीथीं। रामय्या पिल्लंकी पांच पत्नियां थीं । पर उनसे कोई संतान नहीं थी । चिन्नम्मे उनकी छठी पत्नी थीं और उनके दो पुत्र हुए--सभापति और परशुरामन तथा दो पुत्रियां हुईं-- उज्जामलै और सुंदरांबाल। रामलिंग पांचवी संतान थे। जैसा कि संतों और उपदेदाकों के विषय में सामान्य रूप से कथाएं प्रचलित होती हैं, किवदंति है कि उनके जन्म भर उसके उद्देष्य के विषय में एक शंव तपस्वी ने भविष्यवाणी को थी । यह भी कहा जाता है कि शिव स्वयं तपस्वी के रूपमे रामय्याके घर आये तथा घर में कुछ दूर आगे चलकर अंतर्ध्यान हो गये । रामलिंग अभी छह माह के ही थे कि उनके पिता की मृत्यु हो गयी और उनकी माता अपने गांव पोन्नेरी लौट आयीं । यह कहा जाता है कि जब वे पांच माह के थे एक बार उनके पिता उन्हें चिदम्बरम ले गये । वहां शिशु रामलिंग को “चिदम्बर रहस्यः के दशन हए । परदे के पीछे के इस खाली स्थान कौ निराकार ब्रह्म का प्रतीकं माना जाता है। संभवतः जब रामलिग को चिदम्बरमले जाया गया था, वे लगभग छह माह के रहे होगे, यह लेखक की मान्यता है । अपनी कविता मे, जहां वे अपने बाल्यकाल के अनुमवों की चर्चा करते हैं, रामलिंग केवल मां को याद करते हैं, पिता को नहीं । उस दीशव कालमे, जब मैं मांकोले लाया था, पास तेरे चिदम्बरम में,




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