वैदिक धर्म | Vaidik Dharm

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Vaidik Dharm by श्रीपाद दामोदर सातवळेकर - Shripad Damodar Satwalekar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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राजयोगके मूलतत्व और उनका मभ्यास सुधार करना आवश्यक है ! इस बातका शत्तर वे नहीं दे सकेंगे । इसी प्रकार वे भपने लाचरणोंमें सच दोंगे या नहीं इसका निणणषर भी काडिन है । ठीक इसी तरह स्व्युके समय क्या क्या दोता दै, इस बातकों सूदम दृष्टिसे प्रत्यक्ष देख घकनेवाका! योगी ख़त्यु-विषयक जानकारी बिट्कुछ ठीक ठीक बता सकऊेगा। किन्तु वैद सचाईसे ध्यवदार करने वाला तथा निव्यनी होगा दी ऐसा नियम नहीं है तथा यदि वदद दिन्दूचमं था लन्यधमे सुधारनेके विषयमें कोई बात कड़े तो उसे निश्चित रूपसे बुद्धिमत्तापूणं ही नदीं माना जा सकता | योगमाग द्वारा मनुष्य जब बहुत भागे बढ जाता हे भोर बहुत उच्च भूमिका पर सिद्धि प्राप्त कर लेता है; डस समय यह प्रश्न नहीं रदता ! उस समय वह ईश्वरके स्वरूपके भलन्त निकट ला चुकता हैं। इंश्वरी गुण, इंख्वरी चातुर्य, भ।दि उसके समाव भाचुक्ते है । दस प्रकारके सस्क्रान्तिमार्गमें बहुत भागे बडे हुए मनुष्योंको छोड दिया ज्ञाय भोर सामान्य कोटिकी सिद्धियोका दी विचार किया जाय तो सिद्धियोंका या भाचारका ( या चातुयंका ) कोई सम्बन्ध नी है; हसे न भरना चाहिये । सामान्यत: नो सिद्धि हमें दिखाई पडती ह, वे भूरोकके एक पायरी ऊपर जो भुवर्लोक है, खसे भ्रयः सम्बन्धित रहती हैं । गदेव नेक वपौतक जीवित रह सङ भौर शेरपर वैऽ-- कर सपका चाजुक छेकर पयंटन कर सके इसलिये संसारकों वे बुद्धिमत्ताको, सदाचारकी शोर मानवकी परमोश भवस्थाकी चिक्षा दे सकते हैं, ऐसा नदीं है । शानेश्वर कादि चारों भाइयोंने ' जैसेको तेसा ' इस न्यायका भाभ्य केकर दिवार चा भौर चोगदेवकी लाखों में भंजन डाका | इस बातका रहस्य भव पाठकोंकि ध्यानमें भाजायगा। सृष्टि-नियमने नीति भनीतिका कोषं सम्बन्धे न दोनेके करण नीवि्ान या भनीतिमान्‌ दोनों ही प्रकारे ग्यक्तियों को लिद्धि भाप्त दो जाती हे ! जो इठताके साथ प्रयत्न करेंगा, उ लकी सृष्टामं गति षो सकती है; फिर चाहे वश्च मनु्य खदाचारी हो या दुराचारी हो । रसायनशास्र-- का जिसने च्छा लभ्या किया दोगा वष नावश्यक पकरण संग्रह करके हाइड्रोजन वायु तैयार कर सकता ३ (१२३) है । शख प्रयोग्मे वह जस्त इकडे पर सस्प्यूरिक शति खंडे दसौ वह वायु अवहयमेवं बाहर भाजायेगा। पिङ्‌ उडेटनेवाला रामदहैया रावण है, एकपर्नवित का पारन करनेवारा है या दृसरेरी खी चोरक भगा छेजानेवाका है, इन बातोंका विचार रसायन शास्त्र नहीं करता । बहुत उख भूमिकाको दात छोड़ दें तो ऐसा कहा ज्ञा सकता है कि सिद्धियोँ प्राप्त करना, यह केवल भभ्यास एवं सतत उद्योगक प्रश्न है तथा जो मनुष्य इसके लिप मावइयक प्रयत्न करेगा उसे वे मिल जौयगी । इसी लिये योगशाख स्पष्ट रूपसे सबके सामने रक्‍्खा नहीं जाता । पिस्तौक, कारतुस, डायना माइट, आर्सेनिक भादि. पदार्थ चाहे जिस किसी को ब!जारमें नहीं मिल जाते । कानूनन जनता के हितके लिये उस विषयमें कुछ शर्ते निश्चित रददती दें । इसीलिये योगणाख्र सबके छिये साधारण रूपमें सिखाया नहीं जात। । योगश्षाखका विचार करत समय उसका मूल्याकन किसी भी प्रकार हमें रूम नदीं काना चाहिये । सिद्धि प्राप्त होनेपर जो बातें पढ़िले अइइय रहती हें वे दिखाइ देने कगती हैं। जेते यदि मनुष्यो मरणोत्तर स्थिति प्रलयश्च दिखाहं दे, मुक; स्वगंरोक दिखाई दें, मनुष्य जनो पुनः पुनः जन्म छनेकी पिया करता दै वह दिखा दे तो उसका जडवाद नध्प्राय दो जायेगा । सत्युफे बाद सबकुछ समाप्त हो जाता है, ये विचार उसे पट नहीं सकते । प्रत्येक जन्ममें मनुष्यका गुण विकास होता रहता है, ऐसा डसका इद विश्वास दो जायेगा। शौर उसके जीवनकों एक भष्छे प्रकारकी आदत कग जायेगी । यदि ऐसा मनुष्य वक्ता अथवा लेखक हुआ तो मचुष्योंके जीवन- पर्‌ उसके चरिश्रका तथ! बोरुनेका दहत भविक परिणाम द्ोगा । यदि ऐसा हुआ तो वह मनुष्य समाजके लिये अत्यन्त उपकारी सिद्ध होगा ! इससे ज्ञात दोठा है कि समाज भर व्यक्ति को थोग सिद्धियोंका बहुत सा छाभ हो सकता है । [० ६.१ | सिद्ध ओर समझदारी किन्तु अजिक वस्तुओंके दु्ेनमात्रसे ही मनुष्य समझ- द्र होजाता है, देसी बात नकी है । चतुर्थ प्राप्त करने




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