पद्मचन्द्रकोष | Padmachandrakosh

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Padmachandrakosh by गणेशदत्त शास्त्री - Ganeshadatt Shastri

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about गणेशदत्त शास्त्री - Ganeshadatt Shastri

Add Infomation AboutGaneshadatt Shastri

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
... . छोला गेंया है । थे धर्म अंथके समान पढ़ने कथमथ पद; २ कुमारसंभव और शकुतला, ४ शकुंतला, ५ मेघदूत =, है यूब्यी ~ न | ६ कादम्बरी चित्र, ७ काव्यकी उपेक्षिता ये सात निबन्ध है सरल मनोविज्ञान । इसमें मनोविज्ञान जैसेठिंन | और इनमें उक्त चीन अरन्थोकी मपू ओर मार्मिक समा- ` विषयको बहुत हौ सरल्तासे खगम साधा अल तरह | टोका फी गर है । थोड़ेमें ्हुत कह डालना रवि बाबूका उदाहरण आदि देकर समझाया है. और प्रत्येक स्यायके | खास गुण है । मू० ॥) अन्तमं एक रोचक प्रंश्नावली दी' है । मू० १ ॥) समाज । अयु० बाबु बद्रीनाथ वमौ एम० ए०, काव्य कालिदास ओर भवभूति । सं्छतके दो षिद्ध | तीथ। यद भौ रवीन्द्रबाबूकी एक निबन्धावलीका अनुवाद कवियोक्रे अभिज्गान शाष्न्तल ` ओर उत्तररामचि इन दो | दै । परमे भाठ निबन्ध दे-१ आचारका अत्याचार, २ समु- नाटकोंदी गुणदोषविवेचिनी, म्मस्पर्िनी ओर हनात्मक | द्यत्र विलासकी फौँसी, ४ नकलका निकम्मापन .... समालोचना । यह. समाठोचना कितनी बदिर्योगो, यहं | ५ प्रच्य ओर्‌ प्रतीच्य, ६ अयोग्य भक्ति, ७ पूर्व और पश्चिम, ` बतलनेके किए इतना दी बतला देना काफी होगकि इसके |. विद्रीपत्री प्रभा्के सम्पादक लिखते है-“रवीन््नाथ ` ठेखक्‌ सुप्रसिद्ध नाटककार ख ° द्विजन्द्रलार राय मू०१ ॥) । बावूकी छेखनीसे जो कुछ निकलता ह वह विचारोंका उत्तेज कि, | सादहिव्य-मीमसिा) यदह भी एक समालोचःन्थ है। चित्ताकर्षक और अद्भुत हेता है। .....इस पुर्तकका हर ६ ईससं पूर्वके और पश्चिमक साहिद्यकी--यूरीग्रन और ं प्र्ना विचार पूर्ण उपदेशोसे भरा ह मूल्य ॥ |] आयैसाहियकी-दुखनालक समाखोचना की ए है भोर | अञ्जना । रेखक--श्रीयुत ददन । एक पौराणिक ` इस देशके साहिलयको सब तरहसे आदरणीय) ओर | कथक़्े भाधार्से लिखा हुआ मौढिक नारक । स॒दशेनजी ` । महान्‌ षिद्ध किया हे । मू० १1] । | सिद्धस कहानी रेखक है! उनका यह पहला ही नाटक ` राणा प्रतापसिह । खगीय द्िनेन्दवाकूं दुभ नार- है और श्समे भी वे अपनी खाभाविक प्रतिभके बरसे यशखी ` ऋका अनुवाद । इसमे महाराणा अताप, उनके 1६ शन्तसिंह, | ईए हैं मूल्य १४) 2 राजकवि पृथ्वीराज, उनकी खरी जोश्चीबाई, कवरकी कन्या मुक्तघारा । महाकवि रवीन्द्रनाथ ठाकुरके एक नये. | ` मेदरुननिसा ओर भानजी दौख्तुन्निसा आदि पाके चरित्र एक | नारक्का अनुबाद्‌ । इसमे व्यक्तिगते सामाजिक, राष्ट्रीय और. । अपूव जर अकल्पनीय ढंगसे चित्रित किये से हैं । सू० १॥) और भन्तरीष्ट्रीय समस्याओंपर एक नये ही ढंगसे प्रकाश . अन्तस्तङ । इस छोटीसी पुसकमे सुर, दुःख, स्ति, | डाल गया है । प्रारेभे प्रो घमैत्द्रनाथ शाखी एमन एण, मय, कोष, लोभ, निराशा, आशा, घृण, प्यार, रला, | तकपरिरोमणिकी एक विस्तृत भूमिका है जिससे नाटककां ` अतृपति जादि मानसिक भा्ोंको बिल्छुरटी अनोखे ढंगसे | अग्प्राय बि्कुर स्पष्ट हो जाता है। नाटकपाश्रोका चरित्र चित्रित किया हे । मू० = विङ्हषण भी किया गया ह मू° ॥ 2) | । ` जातिर्थोको सन्देश । मूरु-खेवक शेयुत पाठ स्चिई | प्रुहसव रुस्तम । सगीय दिजेन्द्रराल रायके बंगाली ओर भूमिकाञेखक पादियसम्रार्‌ श्री रीन््रनाथ ठक्कर । | नारका अहुवाद्‌ । अनुवादक--श्रीमान्‌ ससी अजमेरीजी । . इसमें साम्राज्यमद्से मतवाढी हुई पश्वा जाति्थोको बड़ा | लगभग तीन चतुर्थाश भाग पद्यका है । करुणरसप्रधान खेल ही मार्मिक ओर चुभनेवाल्य उपदेश दियादै । मू* 1} | नेयोग्य नाटिका है 1 मू० ॥} १ वि न वतेमान एशिया | पश्वा जातियोंने एशियाके अनेक | चन्द्रनाथ । बंगाठके इस सभयके सर्वश्रेष्ठ ॐेखक शर ` देश, परन्तों जीर अगणित द्वीरपोपर जिन धूर्तताओं, छछक- | चन्द्र चद्टोपाध्यायके सामाजिक उपन्यासका अनुवाद । बहुत. पट, अलयाचारो ओर इठे प्रलोभनोसे जो भधिकार बिलार | ही मार्मिक ओर हदयद्रावक है । मू० बारह आने । = किया है और अनेक बड़ी बड़ी जातियोंको अपना गुलाम |. अस्तोद्य और स्क्रावलम्ब र) बनाया दे उनका सारा कचा चिठा युद्धकाले घा ¢ ते उपदे! इसमें दिया है । मू० ९ | .. नीति-विज्ञान । लेखक न न का हिन्दीअनुवाद मू० ॥-] क १ | भारत-र्मणी। दिजन््र बाधका सामाजिकनारक मू०॥}. | कोरम्बस । अमेरिकाका पत्ता लगनिवाले साहसीवीरका श्लीवनचरित मू० ॥!) | | सन्तान-कटपह्ुम । इस पुस्तके देशी विदेशी वथो | लोर डाक्टरोॉकी सम्मतियोँ देकर मनचाही खूबसूरत, बलंः वान्‌ सौर नीरोग सन्तान उत्पन्न करनेकी बिधि शिखी गै ¶- | है । पू १)




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now