हिन्दुस्तानी त्रैमासिक २ | Hindustani Traimasik 2

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Hindustani Traimasik 2 by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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यशायाल क उपन्यास: समाज्जिक मूल्यों ऽ झ्ाम्माणिव्क दस्तावेज कक अगि व्राभ्गक्छर सिंह प्रेमचन्द्र के पश्चात यशपाल ऐसे सशक्त उपन्यासकार हँ जिन्ोने समाजिक मूल्यों का | गहराई से अपने जीवन मे अनुभव किया ओर उन्हे अपने उपन्यासो का मुख्य विषय बनाया! उन्होने अपने उपन्यासो मेँ भारतीय समाज के सभी वर्गो की समस्याओं ओर विषमताओं को नजदीक से देखा ओर जीवन्तता से उनका चित्रण किया। एक ओर परम्परा से चले आ रहे रूढ़िवादी विचारों, शोषण आदि का विरोध ` [उन्होने अपने उपन्यासो के माध्यम से किया तो दूसरी ओर स्वस्थ समाज की निर्मिति के लिये क्रान्ति का आवाहन भी.किया। यशपाल जी के उपन्यासो मे दादा कामरेड , पार्टी कामरेड , देशद्रोही, दिव्या, ` 'झूठा सच' और तेरी मेरी उसकी बात' आदि महत्त्वपूर्ण हैं। 'दादा कामरेड' यशपाल का पहला | उपन्यास है। दादा कामरेड में राजनीतिक क्रान्ति के साथ सामाजिक क्रान्ति पर भी चर्चा है। उपन्यास की भूमिका में उपन्यासकार ने लिखा है कि, “संसार मे आज अनेक वादों ... पूंजीवाद, जातिवाद, गाँधीवाद, समाजवाद का | संघर्ष चल रहा है। इस विचार संघर्ष की नींव में सामंजस्य बैठाने का प्रयत्न एवं इन वादों के संघर्षो से उत्पन्न समन्वय ही मनुष्य की नयी सभ्यता का आधार होगा। मनुष्य होने ` के नाते हम इस संघर्ष की उपेक्षा नहीं कर सकते। इस संघर्ष के परिणाम के सम्बन्ध्मे ` हमारी चिन्ता स्वयं अपने ओर अपने समाज की है।“ (दादा कामरेड, पृ० २) उपन्यास में यशपाल ने इसी भूमिका का विस्तार विभिन्न. [घटनाओं के माध्यम से किया है। इन्हीं .| सामाजिक घटनाओं में से एक नारी मुक्ति का




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