भोंसला राजदरबार के हिन्दी कवि | Bhonsala Rajadarabar Ke Hindi Kavi

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Bhonsala Rajadarabar Ke Hindi Kavi by कृष्ण दिवाकर - Krishn Divakar

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about कृष्ण दिवाकर - Krishn Divakar

Add Infomation AboutKrishn Divakar

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
{ ७ ) रोतिकाल के प्रसिद्ध आानाय के रूप में नितामसि का परिचय हिंदी जगत्‌ को है । झाचार्य रामचं्र शुक्ल -ने रातिकाल के प्रवर्तक के रूप में जब से इनका समथन किया तब से हिंदी विद्वानों ने चि्त।मणि पर समय स्मय प्र कुदं लिखा ] भूषण, मतिराम, केशव श्रादि के विवेचन के प्रसंग में भी इनकी न्वर्चा पर्याप्त की गई है । परंतु चितामणि के जीवन तथा साहित्यिक कृतियों का सर्वोग विवेचन करनेवाला कोई ग्रंथ अबतक प्रकाशित नहीं हुआ है | नवलकिशोर प्रेस, लखनऊ से बहुत दिन पूर्व कविकुलकल्पतरु छुपा था जो आज दुर्लभ है । जिंतामणि के उपलब्ध अथों को प्रकाशित रूप में उपलब्ध न होने और उनके श्रप्राप्य तथा नवीन अथों क खोज न होने का परिणाम यह हुआ कि कुछ विदान्‌ चितामणि को कृतित्व से शुत्य” भी मानने लगे | 'चितामणि के विषय में परंपरा, से जो किवदंतियाँ रहीं उनकी कमी 'परीक्षा भी नहीं की गई शरोर वदी पिट पिटाई बात दी साहित्य के बृहत्‌ इतिहास जैसे श्रययावत्‌ ग्रंथों मेँ मी श्रा गई | श्रवः चितामणि को नागपुर के मकरद्शाह मोखला के श्राय म जाना, माषापिगल ( छुंदविचार ) का रचनाकाल, चितामशि का शार के दरबार मे जान।, चितामणि का जन्मकाल. चितामणि के अर्थो का श्रपरप्य होना श्रादि श्रनेक बातों पर विचारविमर्शं करके सबल प्रमाणो क श्राघार पर लेखके ने अपने निषकरष दिए हैं | इसके झतिरिक्त चितामणि के रसविलाख तथा कृष्णचसिि ये दो श्रज्ञात प्रय प्रकाश में लाकर उनकी समीच्ता. मी प्रस्तुत की है. | | ठीक यही बात “ूपशंभु” के संत्रंघ में भी हुई है । 'शिवर्तिह सरोज से लेकर हिंदी साहित्य के बृहत्‌ इतिहास” तक के लगमरा सभी ग्रंथों में 'दपशुंमु” -को सिंतारागढ़ वाले :शुंसुनाथ 8६ ..सुलंकी माना है, जिनका इतिहास में -नाम तक नहीं मिलता । इनका जन्मकाल भी संवत्‌ १७२८ वि० माना दे जब कि वह “दपशंभु” का उपस्थिति काल है । इस प्रकार की भ्रांतियों. का मुख्य “कारण यही है कि किसी ने इनके ग्रंथों को ठीक तरह से पढ़ा ही नहीं । यदि पढ़ा होता ;तो समस्त श्रांतियों का निराकरण स्वतः हो जाता | इनके भयो में नायिकामेद्‌--तथा नखशिख के उल्लेख मिलते ई -जिनमे से नखशिल की अपूण प्रति को बाबू श्री जगन्नाथ दास “रत्नाकरः ने सन्‌ १८६३ ३० मेँ प्रकाशित किया था. जो च्राज दुलम है । नायिंकामेद के कुद फुटकर छंद १, शिवसिह सरोज, कविसंख्या ८३७, मारन वर्मास्युलर श्रव रिदी लिटरेचर कनिसंख्या ९४१, दिदी साहिप्य का वृहत्‌ इतिहास, भा० ६, पृष्ट ९३३ ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now