ऐनी बेसेन्ट | Ainee Besent

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भारम्भिक जीवन और आध्यात्मिक संघपं प उनके सम्मुख चार समस्याएं थीं: 1. मृत्यु के पर्चात्‌ ताकयामत दंड ओर पीड़ा । 2. ईश्वर को “मंगलमय' और “प्रेम स्वरूप कहते हैं, तो उसने तमाम पापों और कष्टों सहित यह दुनिया क्यों बनाई है ? 3. ईसा के बलिदान का स्वरूप । न्यायी ईश्वर ने ईसा को संसार के पाप के लिए पीड़ा क्यों सहने दी और पापियों को पाप से मुक्ति क्यों देता है ? 4. बायविल के संदर्भ में प्रेरणा का अर्थ । यदि वायविल ईश्वर-रचित है तो इसमें असंगत भर नैतिकता के विरुद्ध स्थल क्यों हैं ? उन्होने रावटंसन स्टापफोडं, घ्रक, स्टेनली, ग्रेग, मेथ्यू अर्नल्ड, लिडन, मैन्सेल मौर अन्य संशयवादियों की पुस्तकों का अध्ययन शुरू कर दिया । समाज-कल्याण के कार्यं करने, रोगियों की सेवा-सुश्रूषा करने भौर दीन-दियों की सहायता करने से उनके मानसिक तनाव को शान्ति मिलने लगी । इसके वाद उन्होने बेतिहर मजदूरों के वारे में बहुत-सी जानकारी प्राप्त की और खेतिहर मजदूर यूनियनों के कार्यों का अध्ययन किया जिनका उन दिनों किसान लोग विरोध कर रहे थे और यूनियन के सदस्यों को काम नहीं देते थे । इसके वाद वह एक आस्तिक उपदेणक रेवरेन्ड चार्त्स पूसे के सम्पर्क में आई । वह अब ईसा के दैवत्य को छोड कर उनकी मानवीयता पर जोर देने लगीं । इसके बाद उनके सामने यह समस्या उठ खड़ी हुई कि अगर ईसा को ईश्वर के रूप में मानना छोड़ दिया जाए तो फिर ईसाइयत को भी एक धर्म के रूप में मानना छोड़ना पढ़ेगा । कुछ समय तक उन्होंने डॉ० पूसे से पत्रव्यवहार किया लेकिन उनसे सन्तुष्ट नहीं हुईं । 1872 तक उनका श्री और श्रीमती स्काट से परिचय हो चुका था जिन्होंने अपने घर को विधर्मी विचारों का अड्डा बना रखा था और ऐनी वेसेन्ट का “फ्री थॉट' (स्वतन्त्र विचार) निवन्ध थामस स्काट के लिए ही लिखा गया था । जैसा कि. बड़े सुन्दर शब्दों में उन्होंने वताया है, वह (निवन्ध) नजरेथ के ईसा पर था । भौर उन्होंने स्वयं स्वीकार किया है कि उसकी लेखिका एक पादरी की पत्नी है। इसके वाद से उन्होंने ईसामसीह के स्मरणार्थं पवित्र भोजमें शामिल होने से इन्कार कर दिया और जब किसी ने पूछा कि क्यों, तो आपने साफ-साफ कह दिया कि भोज में भाग लेने वाले के लिए जिस मत-विश्वास की प्रतिज्ञा करनी पड़ती है, वह प्रतिज्ञा वह ईमानदारी से नहीं कर सकतीं । 1872 में वह अपनी शंकाओं से परेशान और अप्रिय घरेलू जीवन से दुखी होने के बावजूद सिबसे नामक गांव में टाइफायड की




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