ऋग्वैदिक काल में पारिवारिक सम्बन्ध | Rigvaidik Kal Men Parivarik Sambandh

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Rigvaidik Kal Men Parivarik Sambandh by डॉ शिवराज शास्त्री - Dr. Shiv Raj Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४, ऋग्वैदिक काल में पारिवारिक सम्बन्ध के अव्ययन का क्षेत्र एक झ्रोर ऋग्वेद ्रौर श्रथवंवेद तक विस्तृत है प्र दूसरी ्रोर ऋग्वेद पर ग्रथर्ववेद में पाए जाने वालि सम्बन्धवाचक पदों तथा परिवार के स स्यों के मध्य यौन-सम्बन्धों के विवेचन तक सीमित है । डा० इरावती कारवे ने भी ऋष्वेद मे उपलब्ध परिवार-सम्बन्धी सामग्री का पूणं उपयोग नहीं किया है । फिर. डा० एस ० सी० सरकार श्रौर ड ० इरावती कां ने ऋगबेंदिक श्रारयों के पारिवारिक संगठन तथा सम्बन्धियों के पारस्परिक व्यवहार का जो चित्र निरूपित किया है, वह पूर्ण रूप से र वीकार्य नहीं कहां जा सकता है । इसका एक कारण यह भी है कि उन विद्वानों ने ऋग्वेद में . उपचब्ध सामग्री का पूरा पूरा उपयोग नहीं किया । इसलिये ऋग्वेदकालीन पारिवारिक संस्था के संगठन के परिपूर्ण एवं स्पष्ट चित्र के ग्रहण के लिए ऋग्वेद के श्रधिक विस्तृत श्रध्ययन की ग्रभी भी उतनी ही श्रपेक्षा है, जितनी कि ऋग्वेद के ्रालोचनात्मक श्रव्ययन के प्रारम्भिक काल में थी । क्योंकि जिन किन्हीं विद्वानों ने ऋग्वेद का गहन अध्ययन किया है, उन्होंने इस विषय को केवल गौणरूप से ही लिया है । लेकिन मानव जाति के सांस्कृतिक विकास के ग्रध्ययन की दृष्टि से यह झावश्यक है कि मुख्य रूप से ग्रार्यो की .परिवार- संस्था के अध्ययन को लक्ष्य में रखकर ऋग्वेद का अध्ययन किया जाये । प्रस्तुत अध्ययन उसी दिशा में एक प्रयत्न है । थी क प्रस्तुत अध्ययन में ऋग्वेद में उपलब्ध परिवार-सम्बन्धी प्रत्येक सामग्रीः का उपयोग करके तत्कालीन परिवार संस्था के संगठन का परिपूर्ण चित्र तथा. उस संगठन में स्वीकृत सम्बन्धों . से उत्पन्न कत्तंव्यों तथा ग्रधिकारो कौ पूणं विवेचना करके ऋग्वेद के अध्ययन से परिलक्षित होने वाले पारिवारिक सम्बन्धौ के विकास एवं परिवतेन क सम्मावित कारणां पर विचार किया गया है । प्रस्तुत भ्रध्ययन में ऋग्वैदिक गर्यो की पारिवारिक संस्था के संगठन तथा संम्बन्धों के अधिकार श्ौर कर्तव्यों के विषय में जो परिणाम निकाले गये . हैं, चाहे वे सब विद्वानों को अन्तिम रूप से मान्य न हों; परन्तु इस श्रध्ययन में ऋग्वेद में उपलब्ध परिवार सम्बन्धी सामग्री को पूणे रूप से संकलित कर । दिया गया है, इसलिये यह अध्ययन प्राचीन तथा वर्तमान भारतीय समाज का अध्ययन करने की इच्छा वाले समाज-विज्ञान-शास्त्रियों के लिए उपयोगी सिद्ध ऋप्ेद मे इण्डो-यूरोषीय-भाषा-भाषी जातियों के एक भाग के सामाजिक विकास-करम की जो विशिष्ट श्रवस्था परिलक्लित होती है, वह श्रवस्या उनके भारतवर्ष में प्रवेश से पहले ही समाज-विकास-क्रम की विभिन्न अआरम्भिक




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