समाज आर्थिक इतिहास के अध्ययन में विष्णु - पुराण का महत्तव | Samaj-Arthik Itihas Ke Adhyyan Mein Vishnu Puran Ka Mehettav

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Samaj-Arthik Itihas Ke Adhyyan Mein Vishnu Puran Ka Mehettav  by श्याम मनोहर - Shyam Manohar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(©) में इन अट्ठाईस प्रकार के वधौ अथवा अशक्तियों का व्यापक विवेचन किया गया है। सांख्य दर्शन के अनुसार पांच कर्मेन्द्रिय, पांच ज्ञानेन्द्रिय तथा मन, ये कुल ग्यारह इन्द्रिय बाध एवं तुष्टि ओर सिद्धि के विपमर्य से सवत्रह बुद्धि बध ये समस्त अट्ठाईस बध कहे जाते हैं।'” बहरापन | स्पर्श शक्ति का नाश, अन्धापन, जिह्वा शक्ति का नाश. ज्ञानेन्द्रिय की कमजोरी. गूंगापन, लूलापन, लंगड़ापन, नपुंसकता, पुरीष-शक्ति का नाश एवं मानसिक शक्ति का नाश, ये इन्द्रि वाध दै, इसके अलावा इन ग्यारह वार्धौ के साथ-साथ सत्रह बुद्धि के बाध होते हैं। यहां पर उल्लेखनीय है कि श्री ईश्वर कृष्ण ने अपनी सांख्य-कारिका में जहाँ अट्ठाईस प्रकार के वार्धो पर व्यापक विवेचन किया है वहीं विष्णु पुराण में अट्ठाईस बाधों का उल्लेख मात्र प्राप्त होता है। इससे यह प्रतीत होता है कि सांख्य द्वारा प्रतिपादित अट्ठाईस प्रकार के बाधों की अवधारणा, पूर्ण रूप से प्रचारित हो चुकी थी और यह विद्वत्‌ समाज द्वारा पूरी तरह से स्वीकार कर ली गयी थी। यही कारण है कि विष्णु पुराण में बाधों का संकेत अथवा उल्लेख मात्र से ही पुराणकार को यह विश्वास था कि लोग इसके वास्तविक अर्थं ओर गन्तव्य को ग्रहण कर लेमे। निश्चय ही यह सांख्य कारिका छ खना के बहुत बाद ही रिथिति का परिवायक दहै! कालीदास भट्टाचार्य ने ईश्वर कृष्ण ओर उनकी सख्य-कारिका के काल का निर्धारण तीसरी शताब्दी ईसवीं किया है।'”




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