ललितपुर जनपद के सेवा केन्द्रों का एक विश्लेषणात्मक अध्ययन | Lalitapur Janapad Ke Seva Kendron Ka Ek Vishleshanatmak Adhyayan
श्रेणी : भूगोल / Geography
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
185 MB
कुल पष्ठ :
309
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ज्स्तावना
( रप००७ए०१५ ०४)
सामान्यतः देश तथा मुख्यतः अविकसित प्रदेशों में व्याप्त प्रादेशिक विषमता के
निवारणार्थं शासन द्वारा विभिन्न प्रकार की विकासात्मक नीतियों को समय समय पर प्रस्तावित किया
जा रहा है फिर भी नगरों एवं गांवों के मध्य तथा धनी एवं निर्धनों के मध्य प्रगति नहीं हो पायी
है । वर्तमान समय तक समान के कमजोर वर्गो को इन उपागमों से कोई लाभप्रद स्थान नही मिल
सकता हे । सामजिक-अर्थिक बदलाव की प्रक्रिया इतनी सुस्त है कि स्वतन्त्रता प्राप्ति के 45
वर्ष बीत जाने के बाद ग्राम्यांचलों मैं निर्धनता, बेरोजगारी, अशिक्षा, सामाजिक एवं अर्थिक विषमता
जैसी अनेक समस्य वर्तमान में हैं । इतना ही नहीं गांवों में भूमिहीन मजदूरों, सीमान्त॒ कृषक
शिक्षित एवं अशिक्षित लोगों का स्थानान्तरण तीव्रगति से हुआ । देश के समग्र विकास के लिये
कोई एक ठोस उपागम न हासिल हो सकने की वजह से शिक्षाविद एवं नियोजक काफी उलझन
महसूस कर रहे है । वस्तुतः प्रादेशिक विकास के लिये कार्यरत दो उपागम नगरीय औद्योगिक विकास
उपागम अथवा ग्रामीण कृषि विकास उपागम निम्न तबके के लोगों को सुविधायें प्रदान करने समै
पूर्ण: सार्थक सिद्ध नहीं हो सके हैं । इसके अलावा इन उपागमों की विकासात्मक प्रक्रिया इतनी
धीरी है जिनका प्रभाव क्षेत्र में बूंद बूंद टपकने की सदश दिखलायी देती है । वास्तव में ये दोनों
नीतियां मानव विकास की मुख्य धारा की परिधि में ग्राम्य क्षेत्रों को रखे है तथा वास्तविक स्वदेशोत्पनन
उत्तेजना तथा -उपयक्त तकनीकी विकास म विध्य डालता है । वस्तुतः नवीन संगठनों, संस्थानों के
माध्यम से इसी सहयोग एव स्थिर रूप से क्रियान्वितं करना चाहिये क्योंकि यह नीति विकास योजना
भ द्रत गति प्रदान करने में समर्थ है । नीचे से ऊपर एवं ऊपर से नीचे उपागमों के बीच उत्पन्नं
विचार-विमर्श से यह प्रमाणित हो गया कि भारत जैसे ग्राम्य प्रधान जनसंख्या वाले क्षेत्र के लिये
एक ऐसी वैकल्पिक युक्ति का विकास किया जाय जिसका गांवो से नजदीकी सम्बन्ध ही तथा ग्रामीणों...
की आधारभूत आवश्यकताओं की पूर्ति में पूर्ण सहायक हो' क्योंकि हमारे देश का अधिकांश जन
मानस अपने जीविको पार्जन के लिये कृषि कार्य पर आधारित है । इस दृष्टि से सेवाकनद्र उपागम
को एक अति महत्वपूर्ण वैकल्पिक व्यूह रचना समझा गया है क्योंकि इन केन्द्रों के द्वारा किसी
भी क्षेत्र का सर्वागीण विकास किया जा सकता हैं. । यहीं कारण हे कि इस समय भूगोलवेत्कओं
समान शास्त्रियों एवं अन्य शिक्षावि्दीं द्वारा सेवकेन्द्र प्रणाली तथा समाकलित क्षेत्रीय विकास योजना
मैं सेवाकेन्द्रो के अध्ययन पर विशेष, बल दिया जा रहा हे । मार्ग केन्द्र के रूप में सेवाकेरन्द्र
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