कोहनूर | Kohnoor
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
94 MB
कुल पष्ठ :
294
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कोडहनर] क १०. (शिलिगाडी
दुभाग्यवश मेरा पति भी घरमें नहीं था। उस समय वह किसो
निकटवत्ती ग्राम को अपनों एक दूकानका निरोक्षण करने
गयाथा। इस प्रकार मै राज आपके सामने उपस्थित छू ।
“राति को जब च भ्रपने दुष्ट कमं पर पञ्कतावा करतो इड
निद्रा-देकोकी गोदे पड़ी इई गोते खारी धो, उसो समय वह
दुष्ट भेरे बड्स््ूखध श्राभूषणों तथा मणि-माणिक आदि पर
हाघ फेर, सुभ भ्रभागिनौो को भकेलो छोड, न जाने कां चल
दिया ! अब शसो टौोन-दहोन निजन दशाम सुरे सिवा मेरे
पिटग्टइके और किसोका सदारा नह दिखता। वां
पद्ुच, पिताके समक्त सारे पुणय-पाप स्ष्ट-स्यष्ट कड, उनसे
क्षमां मायूँगी। आशा भो है कि, वे भूतपूवे असोम
वात्सल्यू के कारण सुमे इस समयभो तिरष्क त न कर सछा-.
नुभ्रूति द्शानेखे पोछे न टे ग ।
राजकुमार-यदि पिता भापको खोक्तत करनेसे हिच-
किचाये तो?
गुल्लाव--फिर नै... 2...
गुलावको इस धघवराद इई दशमे देख राजकुमार बोला, -
^ज्ीमतो! मेरे पिता एक धघनाव्य क्षमोंदार हैं । उन्होंने मुझे
शिच्तायं आगरेमें रख दिया है। किसो विशेष कायं के लिये
_ हो में उनके पास जारहा हाँ । ये सुफे मेरी इस विद्यार्थोदशा में
चेष्ट द्रव्य उदारता-पूव्वक देते हैं। उससे भेरा और
का, दोनों का,युज़ारा बखू बो दो सकता है। इसलिये यदि.
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