कोहनूर | Kohnoor

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Kohnoor by अम्बिकाप्रसाद चतुर्वेदी - Ambika Prasad Chaturvedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कोडहनर] क १०. (शिलिगाडी दुभाग्यवश मेरा पति भी घरमें नहीं था। उस समय वह किसो निकटवत्ती ग्राम को अपनों एक दूकानका निरोक्षण करने गयाथा। इस प्रकार मै राज आपके सामने उपस्थित छू । “राति को जब च भ्रपने दुष्ट कमं पर पञ्कतावा करतो इड निद्रा-देकोकी गोदे पड़ी इई गोते खारी धो, उसो समय वह दुष्ट भेरे बड्स््ूखध श्राभूषणों तथा मणि-माणिक आदि पर हाघ फेर, सुभ भ्रभागिनौो को भकेलो छोड, न जाने कां चल दिया ! अब शसो टौोन-दहोन निजन दशाम सुरे सिवा मेरे पिटग्टइके और किसोका सदारा नह दिखता। वां पद्ुच, पिताके समक्त सारे पुणय-पाप स्ष्ट-स्यष्ट कड, उनसे क्षमां मायूँगी। आशा भो है कि, वे भूतपूवे असोम वात्सल्यू के कारण सुमे इस समयभो तिरष्क त न कर सछा-. नुभ्रूति द्शानेखे पोछे न टे ग । राजकुमार-यदि पिता भापको खोक्तत करनेसे हिच- किचाये तो? गुल्लाव--फिर नै... 2... गुलावको इस धघवराद इई दशमे देख राजकुमार बोला, - ^ज्ीमतो! मेरे पिता एक धघनाव्य क्षमोंदार हैं । उन्होंने मुझे शिच्तायं आगरेमें रख दिया है। किसो विशेष कायं के लिये _ हो में उनके पास जारहा हाँ । ये सुफे मेरी इस विद्यार्थोदशा में चेष्ट द्रव्य उदारता-पूव्वक देते हैं। उससे भेरा और का, दोनों का,युज़ारा बखू बो दो सकता है। इसलिये यदि.




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