श्रमिक युनियनवाद का सार | Sharamik Unionvad Ka Sar
श्रेणी : अर्थशास्त्र / Economics
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
36 MB
कुल पष्ठ :
153
श्रेणी :
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विक्टर फैदर - Victor Faidar
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सिध्दार्थ - Sidhdarth
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ठठरों के साथ पीपे बनाने वालों. के मालिकों से समभोते हुए ।
१८२४ में “कोम्बीनेदान लॉज ' क़ानुन रह कर दिये गये । इन २५
वर्षों की गर-काशुनी स्थिति के दौरान में हिंसा को प्रोत्साहन मिला श्रौर
ग र-कानूनी गतिविधियां बदीं ! एक झ्ोर तो काम के घंटे बढ़ा दिये गये
तथा दूसरी श्रोर बेरोजगारी फेल गई, कीमतें बढ़ीं, वेतन गिरे, रहने के
मकान खराब थे ही, रहने की शभ्रौर काम करने की परिस्थितियाँ झपमान-
जनक हई, प्रशिक्षित श्रमिकों को हेठा दिखा कर उनके स्थान पर अकुशल
श्रमिकों को नियुक्त किया गया । इन सबसे हडताल, तालाबन्दी, ्रसन्तोष
और अक्सर पर्याप्त शारीरिक हिसा बढ़ी । १८०८ में सूती और ऊनी कपड़ों
के श्रमिकों, १८१० में नोरदम्बरलैंड श्रौर डरहम के खनिकों और १८१२
में स्काटलैंड के जुलाहों का कार्य बहुत बडे पैमाने पर लम्बे काल तक
बन्द रहा ।
१८११ मे मिडलेड की बुनाई की फेक्टसियों मे रहस्यमय “राजा
लुड नामक व्यक्ति के झ्रनुयायी श्रमिकों ने (जो लुडाइट्स के नाम से जाने
जाते थे) मशीनों को तोड़ना झ्ारम्भ कर दिया तथा यहू काम देश के
अन्य भागों में भी बहुत तेजी से युरू हो गया । यह उन नई मशीनों के
विरुद्ध एक ॒हिसात्मक त्रिरोध था जो बहुत से लोगो को बेरोजगार बना
रही थीं । इन बलवों को कुचलने के. लिये सेना और रक्षक दल को
बुलाया गया । कुछ श्रमिक फांसी पर लटका दिये गए तथा अन्य को
काले पानी की सजा देकर श्रास्ट्रेलिया भेज दिया गया ।
फिर भी श्रमिकों ने जिस धधकते' हुये रोष श्रौर क्रोध के साथ श्रपने
इस पतन का विरोध किया उसे कोई भी नहीं रोक सका । हर क्षेत्र के
श्रमिकों ने, एक दूसरे से भिन्न उद्योगों की यूनियनों को रुपया तथा
भ्रन्य प्रकार की सहानुभूतिपणं सहायता देना शुरू कर दिया । इस प्रकार
इस संघषं को उन्होने सबका सामान्य प्रयोजन स्वीकार किया ।
इस बीच दूसरे प्रभावकारी तत्व कार्यरत थे ! परिस्थितियां बदल
रही थीं । समाचारपत्रों, सावंजनिक सभाश्रों और सुधारवादी संस्थाश्रों
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