बुंदेलखंड संभाग के ग्रामीण विकास में महारानी लक्ष्मीबाई क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों का योगदान | Budelkhand Sambhag Kay Gramin Vikas May Maharani Laxmibai Chhetraya Gramin Bankon Ka Yogdan

Budelkhand Sambhag Kay Gramin Vikas May Maharani Laxmibai Chhetraya Gramin Bankon Ka Yogdan by

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about मनीष कुमार श्रीवास्तव - Manish Kumar Shriwastav

Add Infomation AboutManish Kumar Shriwastav

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
कृषि प्रधान देश में विकास के लिए कृषि विकास तथा कृषकों की आर्थिक स्थिति में सुधार आवश्यक है। बैंकों के राष्ट्रीकरण के पश्चात्‌ व्यापारिक बैंकों की ऋण नीति में व्यापक परिवर्तन हुए है। जिसके परिणामस्वरूप ग्रामीण क्षेत्रों में कुटीर उद्योग एवं छोटे व्यवसायों के साख के संदर्भ में प्रथमिकता क्षेत्र के अन्तर्गत सम्मिलित किया गया है। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु व्यापारिक बैंकों के लिए कुछ निश्चित लक्ष्य एवं उपलक्ष्य निश्चित करके उनकी सहभागिता निर्धारित की गयी। जून 1970 से वाणिज्यिक बैंकों द्वारा विभिन्‍न राज्यों में प्राथमिक साख समितियों को वित्तीय सहायता देने के योजना आरम्भ की गयी। चूंकि बैकों के राष्ट्रीयकरण के मुख्य उद्देश्य निर्धन वर्ग के पक्ष में साख का प्रवाह बढ़ना भी था जिससे निर्धनता उन्मूलन की निति द्वारा सामाजिक न्याय के उद्देश्य को प्राप्त किया जा सके, नि: संदेह सरकार की ग्रामीण साख विस्तार नीति के परिणामस्वरूप ग्रामीण साख की उपलब्धता में व्यापक विस्तार हुआ है लेकिन बैंकिंग सुविधाओं का लाभ फिर भी ग्रामीण धनी काश्तकारों तक ही सीमित रहा है , क्योंकि ग्रामीण निर्धन वर्ग पर्याप्त परिसम्पत्ति के अभाव और ब्याज की ऊंची दरों के कारण बैकिंग साख सुविधाओं का लाभ नहीं उठा सका है| ग्रामीण निर्धन वर्ग की साख सम्बधी आवश्यकताओं एवं समस्याओं को दृष्टिगत (४ रखते हुए क्षेत्रीय ग्रामीण बैकों के कार्यकारी दल (1975) ने क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की स्थापना की सिफारिश की ताकि ये बैंक व्यापारिक बैंक एवं सहकारी बैकों के प्रयासों के पूरक के रूप. में वित्त पोषण का कार्य करें | इस दल की सिफारिशों के आधार पर 1975 में 5 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक स्थापित किये गये | धीरे-धीरे इन बैकों का विकास एवं विस्तार हो रहा है | कृषकों की आर्थिक स्थिति दयनीय होने के कारण वह महाजनं तथा साहूकार के चुगल मे फसा था। जिसका कृषि उत्पादन पर प्रभाव पड़ना स्वाभाविक था, यह स्थिति देश कं विकास मं बाधक थी | कृषि व्यवसाय जौ देश का मुख्य व्यवसाय है कि स्थिति सुधारने हेतु कृषि वित्त की समुचित व्यवस्था करना आवश्यक है । स्वतंत्रता के पश्चात भारत में ` पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से विकास करना, कृषकों की स्थिति सुधारना, सामाजिक




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now