श्रीकृष्ण चरित | Shrikrishna Charit

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Shrikrishna Charit by धर्मदेव - Dharmdev

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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५०] श्रीकृष्ण 'रित की गथ तङ्‌ नदी थी । श्वठ सिद्ध हुआ कि कृष्ण को वरीय अमवार धोपित करना एक्‌ नपीन स्स्पना थीं | रामायण और महामारत में जैंसा कि पूर्व भी कद्दा जा चुका है, यदि कद्दीं 'मयतार का सड़ेत भी मिलता दें तो वद नवीन और रमि (त्रः की मूल भना म मेत ते स रे कोरेश बंद प्रन्यसर ै श्राय के विन्द उ्रतादै शौर इसलिए मी वहं नयीन परिडती का मिश्रण हो सिद्ध दोता दै। और जिन पुराणों में उनका टे मिलता है उनका तों निमाण दो झतपदाएवाद, मतिपना, तरो, वता-धापद्ित्त ादि साम्प्रदायिक 'साचार निचार वी प्रतिष्ठा के लिये हुआ था । ` ` या टर बार को प्रथम विरठि ६ --उसे लौकिक घरात से हटाकर श्रलौष्िर प््टगूमि पर खडा छिया गया श्रीर उसे सुह मादय रप्‌ को यनाकर ते श्ारतिक शौर वाप श्रप्रारतिकः च्मौर्‌ वायमीय बना दिया गया | जप झाग्ग को ईश्रर मान कर उसे दिय श्वदार की उपासना देश में प्रचलित हुई तो कम्छोपासना के शआधघार पर नेक सम्प्रदाय स्थापित हो गये । पाचराम भागयत, घासुदेव 'झादि सम्प्रदायों की स्थिति इतिहासकारों ने स्वीकार की है ।” मध्व, निम्बा श्र रिप्णु स्वामी (प्रचलित नाम-वझम सम्प्रशय) 'ादिं के नयीन श्रव्यदाय सी इसी ५० पर में ये, मयीनु मी इसी प९परा 1 नं सन्धलायों ॐ जन्म से पूव तक छण श्वाद्त चरितान्‌ + चरम सालिक च्रायार मन्ध शचीर्‌ प्रतिमादयाल मदापुगप सममे जान ये। परन्तु चारि साधना के प्रचार के कारण वैष्णव * डुन सग्यदायों की विशेष्र जानकारी के लिये ढा० रामकूण मोट माण्रकर छ 2 502४157 53४ उव काम फहाडा००७ 5५5८5 नामद न्प द्रत वादये 1 मेष




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