ज्ञानसागर ग्रंथावली | Gyansagar Granthavali

Gyansagar Granthavali by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ १] सेपनेफी कूपा फी जिसे लिए हम पृज्यश्रीपे अत्यन्त शामारी हैं । इस प्र थफे प्रवाशनया सारा श्रेय थी इन्हीं पूज्यश्री को है । अत यद्‌ इन्दी फे चरणो में समरित द | आप अभी वहती वष्ट साधना में लीन दै, गुरूदेय उन पूर्ण सफय्वा द्‌ यी हमारी मनोकामना हैं। मारी श्च्छाथी रि पृज्यश्रीहइसप्रय मे दो 'ार शाद ल्ते पर आपने किसी भी प्रकार से म्रमिद्धि थे आना स्वीकार नहीं किया।. हमने आपकी इच्छा षै पिपरीत अपनी हार्दिक भक्ति वश आपश्री का फोटो देने फो धृष्टता की है अत इम इसके टिए क्षमाप्रार्यी है। विश्वविश्ुत॒ मद्दापडित श्री राट्ल साइत्यायन ने अपनी अनेक साहित्य श्रवृततिरयो मे व्यन्त रहने पर भी प्रस्तुत प्रथ की भरष्ता चन प्रेमपुरवंक छिग्य मेजनेकी कषा की सपे टिण्टम शाप्त अनुप्रहित दै! स्वर्गाय चायं श्रीहरिसागरसूरिजी मषटाराजने अपने सप्रदस्थ शुटके से श्रीमटू के फुटकर पदों की दो दो बार नकछ फ्ररा मे भेजी प्तदर्थ खनका जामार स्मरणीय द । कल्क्त्ता अगरचन्द नारा वैशास्व क्ष्ण ७ सं० ००१० भअवररटाट नाहटा । ०




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