मेरा बचपन | Mera Bachpan

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Mera Bachpan by रवीन्द्रनाथ ठाकुर - Ravindranath Thakur

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भेर वचपत का दिनि घण्टे का दिसाव नहीं मानता! वहीं कां वार्ह यज्ञे चही पुराने ज्ञमान का है, जव राजमवन के सिंहदार पर समा-मंग का डंका यज्ञा करता, राजा चन्दन के जल से स्नान करने उड जति। दुद के दिनि दोपदरी छो मँ जिनकी देय-देय में हूँ, वे सभी खा पी फर सो रहें है। अकेला चैठा हुँ । चलने का रास्ता मेरी ही मंजॉपर निकाला गया है । उसी रास्ते मेरी पाट्की दूर-दूर के देश-देशान्तर को चढी है। उन देशों के नाम मैंने ही अपनी फितावी विद्या के अजुसार गढ़ लिये है। फभी कर्भ सस्ता घने जंगल के भीतर चु जातः रै, ८ चं } याघ षी भसं चमकर्दी है। शरीर सनसना रहा है। साथ में विश्वनाथ शिकारी है। वद उसकी चन्दूक घाँयसे छूटी 1 बस, सब चुप। इसके याद पक चार पाऊकी का चेहरा चदठ गया । घह वन गई मोरप॑ली चजया, वह चली समुद्र में । किनारा दिखाई नहीं देता | डॉड पानी में गिर रहे हे-छप-छप छप-छपू। हें उठ रही है--दिढती-डुढती, फूलती-फुफुफारती | मल्ला 'चिल्लां उठते है--सम्दालो, सम्दालो, आंधी भाई । पतवार फे पास भव्दुल माफी बैठा है--नुकीली दाढ़ी, सफायठ मूर्दें घुरी चांद । इसे मैं पदचानता इँ । बद दादा फे ङ




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