श्रीमद जगद्गुरु शांकरमठ विमर्श | Shrimad Jagadguru Shankarmath Vimarsh
श्रेणी : हिंदू - Hinduism
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
22 MB
कुल पष्ठ :
721
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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श्रीशद्रर ने काची में देद त्याग किया और उनकी भूति आज मी काची के कामाक्षी मन्दिर में
अनादि कार छे प्रति्ठित ट । भाएतवप में अन्य सय शट्टर की मूर्तिया प्राय पचास वधे काठ के
वाद की हैं (1034 है० के प्रशाशित सेल के अनुसार)! एक कथन ह कि कामाक्षी मन्दिर की
यदद शहर की मूर्ति श्रीशूर की समाधि टू ।
* इन्द-सरखती * योगपड़ केवल कांची मठाधीश का योगपट है और यह अन्य योगपद्ों से
श्रेप्त्व की सूचना चरता दै।
स्माधवीय झ्र विजय श्री मा धवाचार्स (श्रीविद्यारण्य) का रचा हुआ प्रन्थ नहीं है। यह एक आधुनिक
पर्डित भट श्री नारायण शब्नी द्वारा रचना करा के व्यासाचलीय से इलोवों का उद्धत वर,
*सरी सठवाठों ने अपने श्रेप्व प्रमाण परने के लिये प्रकाशित फिया है! दुम्भकोण मठ प्रचार है
कि अमुफ ने अमुक से कहा क्रि अमुक से रचित प्रन्थ है। इस कल्पित वार्ता का चिवरण उस
अमुक व्यक्ति द्वारा पूर्व के पत्रों में सण्डन हो चुका था तथापि कुम्मकोण मठाधीश अपने आन्य्र
देशी याना मे इस कम्पित वातां को नोटिस रूप में छाप ऊर प्रकाश फिये। उस अमुक व्यक्ति
ने कुम्भकोण मठाधीश से मिलते समय इस विपय की चर्चा भी की तथापि उनका प्रचार बन्द
न हुआ) दोपसमान दीखनेवलि युठ विषयों को टेर जगह जगह इस पुरर पर आक्षेप प्रमदां
क्रिया है ओर तीव्र प्रचार क्रते ह रि यद पुस्तक अनादरणीय एवं अप्रामाणिक है।
को में श्रीशष्कर ने पूराम्नाय का सूल मड स्थापित कर ओर् मू गराम्नाय कै पति (क्म) के अनुसार
चारों वेदों का चारों महावाक्यों का उपदेश कर, भारतवर्ष के अन्य चारों दिग्पओं में चार
शिष्य मठों के इरएक को एक एक उस उस आम्नायाजुसार एक मददावाकय का उपदेश देने की
आज्ञा दी।
विविध पुस्तकों में विविध आम्माय नाम दिये गये हैं- 1. ऊर्वाम्नाय 2 मौलाम्नाय
9 मध्यमाम्नाय 4 मूत्छम्नाय 5... मुख्याम्नाय, इत्यादि ।
्रष्वुत इम्भकोण मटाधीश्च अपने काशी भाषण मे कडा मि “ॐ तत्सन् ' महावाक्य नहीं है।
पर. जितनी पुस्तकें [83६ ई० से छपी हैं उन सर्चों में ‹ ॐ ततत् › वो मदएवा्य् सिद्ध रूर
और कुम्भकोण मठ का ही मद्दावाक्य बतलाया गया है। इम्मकोण मठ की प्रामाधिक पुस्तव
*सुबमा * व्यारया म “ॐ तत्सत् ° को महावाक्य बतल्यया गया है। कहीं केवल प्रणव
* ॐ को उपदश्य महावाक्य बतलाया दै ।
धी शक्र णव ुरेश्रराचायं दोनों ने सशरीर कैलास जाकर पाच सिमो को श्रां परमेश्वर वे प्राप्त
कर सौन्दमैलहरी प्रन्व एवं शिवरहस्य भी प्राप्त किया ।. कुछ पुस्तहों में उल्लेख है कि श्रीशकर
ने केदार, नीलण्ठ, चिदम्वर, *रगेरी/ काची में पाय ठिंग का बटवारा किया। कुछ पुरूकों
में लिखा हैं कि श्री झकर मे अपने प्रतिष्ठित पाच मठों में पाच गों की प्रतिष्ठा की ।
आचार्य शंकर के दिग्विजय के अन्त से और अपने देदद त्याग वे पूर्प काची में सरेरपीठारोदण
उरते समय भी सरती के प्रश्न पर श्रीदकर के परकाय प्रदेश का उल्लेख दै।
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