सुधाकर काव्यकुञ्ज | Sudhakar Kavyakinja

Sudhakar Kavyakinja by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न & सुधाकर काल्य. छंद & _ में के भगवान पत्र | रा श्री० से ज्ञाग लाग 1 शुसना .- 3 ^ >. `स शा. न न्व ० न्द्‌ पे । प्र स फ न ` धर्‌ वियः प्रेमालुसग सरिता सम वद्धि दें ॥ श्री० _ :.. डूं चददी पितु मात तात 1 ब्र्मादिक जिन हीं व्यात | (+ निगमागम शय नात, ऊय परति कटि करं रे 11 श्री विश्व विपय विपट्ट जान नाम शुधाकरः हु पान | : . निभवन .पती शाटल मरि; सक्ति मुक्ति चद्धि रे ए श्री 4 14 अट 4 1; ` -{तसत | सुमरन कर रास नाम व्रिसर्‌ मत माई ! : ' . लय जय रघु छत 'दिनर बंदेद्वी, साथे 1... दर की. .. . दीनत रो सुन सँ देगा घरत दाथ.मात्र ॥ जै ले सचही घ दर करन 1: मक्ति चिमल: प्रणं घगत 1 '. ममता मद मान दरत, - करुणा कर नाये. चैः रमन नी थीख सुनत 1 न्रिन्ुचत पति नाच इन 1 “कः 6 मूर्ख क्यू, मूड घुनत चलकर निज्‌ पात्र ॥ जे जद सिरे दिस दर्रि गग्प जो गात) श्रो मन तुषारः समात 1 2 ि सिलि ईं प्रमु परत मात । मर मर कर वाये 1 मैं से मम दो ग ५ ~~ विरज] नपय करसं गल को पद दुडायो । , नाधर्मं ते चायो द्रु शारण तुन्द्ारी ! ` परते प्रणामत वनमलत, विपद्रा जन करी यरी 1 नाथे « गर्भित यवण जानिन मदटिमा से दरी सिया प्यारी ।' , श्ननी संत बजरंग ने जाकर लंके लगी मव स्म्य क्रियो अनिक्त पनि, ताक दल्या नारी. -लाय जनके पुर तोड धुय कर, सीता वोच प्निवारी 1 ना च हि मोरी खदा क्योली -भिरधापी 1 नाद्र भक्त उरारन शमर्‌ संदारन देष सुज की घारी | सारा 1 ना व श्दायता तता ८ टक ( गजद्याच्त). जानि ययुर दिनश्चमने पनी क्रे ठौती दोदरी जाय चर्य पिया ग्रो रघुवर के नातर दोकाी सवारी: > शरण शरण वचा निषि मद्र सखो लाज दमारं दीन पुघाकर; शरण गदी प्रभु दो निशि दिन चलिद्ारी 1 नाथ में तो आयो हूं शाएण ० न्य ^+ ्तिस्न] वतादे की चैन यह्वी गये श्याम 1 कदन दरि अजुन मान सदी । काम कोध मद लोभ लो त्याग; दे मेरे भक्त चद्टी म कढत श्र बी पपिंच्रसदा सम लाने चुपयणा जिन सन गे टॉप कपट छल द्विंद्र गंवा जिन सत्यत सघा रख लई 11 क० पालत जा चंपर्य सदा मन द्विया कोच द| व्रिफय वासना द्वांड करी जिन सा नित नित नई क सुख दुर पुरस्य पाप नी जाने गति निद्रद्‌ गदी । पड़ी च्चाप श्राचद्‌ मान; प्रमृमय देखे मद्री ॥ कट मुना खतरा तुम सत्य प्रितित्राजो भम दिय वमन रदी । जो मादि भते भन्‌ म॑ताकाः भक्ति सिधाकर; कही ॥ ॐ [प्ल] भजन. कर. भगवत का घर्‌ ध्यान~- ` दयामय दीनन यती भगवान) | विपद विनाश्तन छमति प्रकाशन; जगपदी करुणानिधान छपासिन्धु जगवन्यु विदि, झविगत अमित मदन । उपया रुद्वित सदित पियप्यारी, अतिभा पर से सुलान ॥! न्य रा < कमलनेन नासय स््ामी; त्रजधन जीवन प्रान । धट वट व्यापक च््र्यामी, भजं यन प्रथ निर्वान 1 द° मादन मदन म्रनादर्‌ माधव; महमा दुचश्न वखान 1 भजमन श्रा .व्घुनन्दन सवव; कर्‌ तनमन सं नाच ॥ „` नित श्रानट्ड दोयः“ुध्ाकर;) घर्‌ श्रक्टीविच ध्यान । ; -द्यापद्री च्राप्े च्याप समा ! कर निज झावम कल्यान ॥ ` दयामय - दीनन ` परती ; 5. 2, €, टी {~= दश [) क




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