कुकडूं कूँ | Kukdu Ku
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
116
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सरल को घोपलो 3
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में घर से धिमा जल-पाम कयि निकला धा. अनत
यद सो यात मानी शुई थी कि उनकी, ऐसी सुन्दर 'जल-
पान-सामप्री' देख कर सुह मे पानी जा गया या, परन्तु
इतना भव भी स्वीकार कल गा कि मेरी नीयत विदङ्
साफ थी) परन्तु उनकी नीयत फो प्या दद्दा जाय ?
जैसे ही मैंने पेंर छूने फे उदेश्य सै अपना हाय बढ़ाया
उन्दने शायद समभ टिया कि फोर उचपया हैं र मेरे
मेवे पर दाघ साफ करना चाहता दे । अतः कलार पकड़
लो। बचपन में घहुत मलाई खाई थी, परन्वु अफसोस 1
आज उनसे फखाई न हुडा सका ।
सो कृमी-कभी ऐसा होता है। बल होते हुए भी हमें
फेवल थद्भा के हर से दूसरों से द्वार स्वीफार कर लेनी
पड़ती है। आज में भी इसी श्रद्धा फा शिकार हो गया ।
मह-युद्ध के सभी भाव हृदय में आ चुफे थे; परन्तु मैंने
उनसे फेवल यदी कदा कि, 'भगवन् सुमते मेवा न चाये
केबल आशीर्वाद दीलिये ॥
वे अच पर्दिवान चुके थे} मेवा न देकर केवठ आशी-
चादि ही देना पढ़ेंगा, यह जान कर खुश तो हो ही गये थे,
सीसे भी निकाल दीं और कहने छगे--“आओ वेढो 1
फते अये १
आज मे सयुरारू जा रदा हं ! अत सोचा कि
न ~ ~= ~ ^ ~ न
॥
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