रासमला भाग १ | Rasmala Bhag-1 (purvarddh)

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Rasmala Bhag-1 (purvarddh) by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १३) घमकर रास, वा्ताए श्रौर लेख एकत्रित करने की सुधिधार्‌ ओर साधन देने का प्रबन्ध कर दिया था । लोगों के श्ज्ञान, दष्यां श्रौर लोभव्रत्ति के कारण जो बहुत से विघ्न हमरि मागे मे राये उनका यदि मं यदा पर वणन करू तो पाठको का मनोरज्जन सो श्रवश्य होगा परन्तु वे उससे उकता भी जावेगे । जो थोड़ी सी बति अगि लिखी जा रही हैं उन्हीं से पाठक इनका च्रनुमान लगा सकेग । कुं लोगो की धारणा थी कि मुम सरकार ने छुपे हुए खजाने हे ढने के लिये नियुक्त किया था, कुछ लोग सोचते थे कि सरकार उनकी जमीने खालमा करना चाहती थी छोर मेरा यह कायै उनके श्रधिकारो मे घुटि द ढने की दिशा मे हो रहा था, सुभे ण्सी भी सूचनये दी गहै कि किसी बश विशेष के भाट की ही मे से नकल करवाते का उचित पारिश्रमिक उमको एक गाव का पट्टा कर देना होगा । अन्त में, सरकारी कांग्रेवश में वाघेला माला श्र मोहिलवश के ठाकुरों के सम्पक में आया शोर सुमे तुरन्त हो मानूम दो गया कि भाटो छोर चारणो कौ खुशामद करने श्र उनको लालच देने की अपेक्षा इन परपरागत सम्मान्य ठिकानों के स्वासियों से प्राप्त छोने बाली थोडी सी भी सूचना शधिक लाभप्रद और उपयोगी सिद्ध होगी । से मह्दीकाटा का पोलिटिकल एजेन्ट था इससे उक्त विचार के अनुसार राउ्य-कमंचारियें की सद्दायता से में इसी प्रान्त से अपना नाम प्रा करने मे समथ हृच्मा, उतना दही नहीं श्रपितु गायकवाड के राज्य से मी सुकं ऐसी दी सुविधायें प्राप्त हो गई (यद्यपि पिले तो ण्क बार बहा फे श्रधिकारि्यो ने इसको अच्छा नहीं ममा था) शरोर बडौदा सर- कारकीश्रोर से पाटण के सूवेदार वावा सादिव की कृपा से मुभे रधा श्रय की एक प्रति चरर श्नन्य बहुमूल्य सामग्री प्राप्न हुई । ये वस्तुं मुम णदिलपुर से मिली थीं जो एेसी आकपेक वस्नुच्रो। का केन्द्र है । मेरा शोधकाय प्राय. बोकिल द्प्तरी कर्तव्यो को पूरा करने से बचे हुए समय मे चलता था । मेरी शोध जैन ग्रन्थों और भारो की बद्दियों तक ही सीमित नहीं थी, अपितु मेंने ददिन्दआओ के प्रत्येक प्रचलित रीति रिवाज का भी 77777 अध्ययन किया श्रौर विशेषत




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