आध्यात्मिक पाठ संग्रह | aadhayatamik paath sangrah
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
28 MB
कुल पष्ठ :
814
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)+ [ ७ `] भक्ति मकरणं
रागादिक बंध हेत, बंधन बह विपति देत्त |
संवर हित जान तासु, हेत ज्ञानताई ॥ जवते > ॥ २ ॥
सब सुखमय शिव है तख, कारन विधि ारन इमि,
ततत्वकी विचारन जिन,-बानि सुधि कराई ॥ जबतें० ॥३॥।
विषयचाहज्वालतें दु,-झो अनंतकालतें सु,-
धांबुस्यारपदांकगाह,- तें अ्रशांति आई ॥ जबतें० ॥ ४ ॥
या बिन जगजालमें न, शरन तीनकालमें सँँ,-
माल चित भजो सदीव दौल यह सुहाई । जबतें० ॥ ४ ॥
( ४ )
व्पासअनादिबियया मेरी, हरन 'पास-परसेशा हैं ।
चिद्धिलास खुखराशग्रकाशवितरन “तिमोनदिनेशा है ।॥2२॥
दुनिवार कंदपेसपेको दपविद्रन खगेशा है ।
*दुठ-शठ-कमठ-उपद्रव-प्रलय-समीर-सुबखणनगेशा हैं ।।पा ०1१1
ज्ञान अनंत अनंत दशे बल, सुख अनंत *पदमेशा हैं ।
“स्वासुभूति-रमनी-वर'*मवि-भव-गिर-पवि '-शिवसदमेशा है
१. निजेरा । २. स्याद्यदरूपी अग्धतके अवगाहन करनेसे।
२. अनादि अविदारूपी फँसी । ४. पाश्वनाथ भगवान ।
५ तीन लोकके सूयं { ६. कामदेव रूपी सपेको । ७. गरुढ़
पक्षी । =. दुष्ट, शठ ेसे कमरके उपद्रवरूपी भ्रलयकालकी अधी
को सहन करने चाले सुमेरुपवत हो । ९. लच्छमीके देश । १०. स्वा-
उभवसरूपौ खी के पति । ११. भ्योको संसार रूपी पर्य॑तके नष्ट
करनेको चज्नके समान ¦! १२. मोत्त महलके स्वामी ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...