आध्यात्मिक पाठ संग्रह | aadhayatamik paath sangrah

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aadhayatamik paath sangrah  by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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+ [ ७ `] भक्ति मकरणं रागादिक बंध हेत, बंधन बह विपति देत्त | संवर हित जान तासु, हेत ज्ञानताई ॥ जवते > ॥ २ ॥ सब सुखमय शिव है तख, कारन विधि ारन इमि, ततत्वकी विचारन जिन,-बानि सुधि कराई ॥ जबतें० ॥३॥। विषयचाहज्वालतें दु,-झो अनंतकालतें सु,- धांबुस्यारपदांकगाह,- तें अ्रशांति आई ॥ जबतें० ॥ ४ ॥ या बिन जगजालमें न, शरन तीनकालमें सँँ,- माल चित भजो सदीव दौल यह सुहाई । जबतें० ॥ ४ ॥ ( ४ ) व्पासअनादिबियया मेरी, हरन 'पास-परसेशा हैं । चिद्धिलास खुखराशग्रकाशवितरन “तिमोनदिनेशा है ।॥2२॥ दुनिवार कंदपेसपेको दपविद्रन खगेशा है । *दुठ-शठ-कमठ-उपद्रव-प्रलय-समीर-सुबखणनगेशा हैं ।।पा ०1१1 ज्ञान अनंत अनंत दशे बल, सुख अनंत *पदमेशा हैं । “स्वासुभूति-रमनी-वर'*मवि-भव-गिर-पवि '-शिवसदमेशा है १. निजेरा । २. स्याद्यदरूपी अग्धतके अवगाहन करनेसे। २. अनादि अविदारूपी फँसी । ४. पाश्वनाथ भगवान । ५ तीन लोकके सूयं { ६. कामदेव रूपी सपेको । ७. गरुढ़ पक्षी । =. दुष्ट, शठ ेसे कमरके उपद्रवरूपी भ्रलयकालकी अधी को सहन करने चाले सुमेरुपवत हो । ९. लच्छमीके देश । १०. स्वा- उभवसरूपौ खी के पति । ११. भ्योको संसार रूपी पर्य॑तके नष्ट करनेको चज्नके समान ¦! १२. मोत्त महलके स्वामी ।




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