असली सन 1875 का सत्यार्थ प्रकाश | Asali San 1875 Ka Styarth Prakash

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Asali San 1875 Ka Styarth Prakash by स्वामी दयानन्द सरस्वती - Swami Dayananda Saraswati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ष क्प द) कल भोग लना दै यह वात मेरी न्त्य हायगी उत्तर | च्छ्म शरार कथा वही जीवकसाथ रहनादैसा श्रत्यन्त | ॥ वणं दीरैवेस श्राकाशदिक पदाथमी परमेशनरमरं व्याप्य हैं और | | ददार्थों की श्ववधि है इनसे सूकम आगे संसार के पदार्थ कोई स्वत्यार्थप्रकाश । ३७५ 9. | 1 दे सो स्याय युक्त ही करता है अन्यथा नहीं सो इससे यह | सिद्ध सया कि श्नेक जन्म होते हैं सो जोव शविद्या दिक दो | | स बुक दोक विषयमे फसा रहना द शस्त जोव का यिबक्रा- | दिक गुर नह होने से बन्घन भी इसका नष्ट नहीं होता जब | दुःख से छूट के मुक्ति को प्राप्त होता हैं प्रश्न प्रथम श्राप | कह चुके हैं कि बिना शरीर से खुल वा दुमख भाग नही हो है | सस्ता सो मुक्ति में भी जौघ को शरीर रहता होगा श्र जो | | चह कि नहीं रहता तो मुक्ति का भाग केसे कर स्का श्र | है जा ऋर सकता हैं ता हमने कहा था कि सन में पश्चासाप से | जत्रा मुक्ति में रहता हैं शोर शरीर नहीं क्यो कि पहिले जा | | खुदम है झोर सब पदार्थों न उत्तम शरोर निमन दै जै भरि { सख लाहा तप्त होता हैं उस म्र श्र्चिसं भी श्रथिक दाह होता | | 3 शेत हो एक झद्धितीय चेतन परमेश्वर सर्वत्र व्यापक दे | उसको ससा से युक्त जोय खेतन सदा रहता हैं कपों | | {ङ ब्यापकर्से बयाप्यका जियाग कमीनहों होता जैसे झाकशा | | स स्वव स्थूल पदार्थों का वियोग कमी नहीं मनुष्य श्रौर वायु. | | आदिक जहां २ चलते फिरते ह वहां < काश का संयोग । | कग्मेश्वर सथ ब्यगपक है परमाणु और प्रकृति जो कि सुक्ष्म | कका




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