वृहद्रव्यसंग्रह | Barhdavyasangarh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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५९ विकोपम्चना.। शुरू अनुवाद, दस मण्णीणे पाणा सेसेगूणंति मण्णवे णुणा ॥ पत्नते इदरेसु य सत्तदुगे सेये ञणा ॥ २॥ पृष्ठ २६ पक्ति १२. इस गाधाका भावार्थ पृष्ठ २७ दौ पक्ति से ५नक में है, उसके स्थानमें निश्नटिखित मायार्थको शद्ध समझना चादिये । -- पर्याप्त अदस्थामे संशी पंचेन्द्रियोंके १० प्राण, असंज्ञी पंचेंदियोंके मनऊे दिना ९ प्राण, 'चोइंदि- योंके मन और कर्णके बिना ८ प्राण; तेईदियोंके मन, कर्ण और चशुके विना ७ प्राण, वेइंदियोंके भन, कर्ण) चक्षु ओर्‌ प्राण के दिना ६ प्राण अर एरेद्वियोके मन, कर्ण, चक्रुः ताण, एमना तथा घचनबढ़के विने। ४ प्राण झोते हूं । अपरयाप्तअवस्थाकि धारक जीवोंमें संशी तथा असंडी इन दोनों पंचन्द्रियेकि श्रासोधास, घचनबढ सौर मनोबढ़कें दिना ७ प्राण होते हैं और चीइंदिय आदि एकेन्ियपर्यत रेष जीवो ्रमानुमार एक एक प्राण घटता हुआ है । २। “एयंतयुद्धदरसी' इत्यादि-- पृष्ठ ६ पति; २७-२८1 इस गाथाका अनुवाद पृष्ठ ऊ७ की पंक्ति २३-२४-२५ में दैं। उसके स्थानमें निभ्डिखित लनुवादकों शुद्ध समझना 'चादिये ।-- “बीद्धमतवाड़ आदि एकाम्तमिष्यास्री हैं १ यश करनिवाठे जाधण आदि विपररीतमिष्यात्के पारक हूं २ तापम आदि विनयमिष्यात्वी दूँ है द्राचा्यं मादि भ॑रायमिष्याष्वी ६ ४ भौर माही! आदि थशानमिष्यास्वी ५ हैं” 'पुंदुरवीदों रिपया”” एह ११९ पति १६-१५॥ हस गावा अनुवाद श्ट ११९ कौ द२ धी भौरष्ड १२० की १२ पतिं टै, र्मे स्थानमें निश्नदिछ्ित अनुवादकों शुद्ध समशना 'वाहिय ।--एक णहे चग १७६८ पुथ १८१९ और नक्षत्र १८३५ गंगनमसंदोंगें गमन करते हैं इसदिये अधिवकमाग ने नशस माग दनय जो शुहूर्च प्राप्त होते दूं, उन शुदर्तोको चंद्र और पूर्पबे आसन श्री जानने बरहि । भर्पन्‌ उतने शुहृत्तों तक चंद्रमा भर सुर्यकी एक नक्षत्र पर रिपिति जाननी चादिये। अवधिष्ट अनुवाद« ईदियकायाऊणिय पुण्णापुण्णे शुपुण्णने जणा 1 दे्दियादिषृण्णेसु- षघीमणो खण्णि पुण्ये थ । १1 शट २७ पक ११-१२॥। इस सायादा अनुवाद पृष्ठ २७ पिः १ भे नदी एर ह 1 एभि वरर निषयिनिह भनु याद टगादेना चादिवि।-- शरदैव, काव भीर आपु वे तीनो प्राण पर्यास जप्या हन दोनों जदो हेति टै । उष्वमनि भः. श प्राण पर्यातरीवेमं हो हेता ६1 बरदरिय आरि पदतोमें दाण्यश्प्राणहोता ह मार्‌ मनोरद प्रण पर्याप्रमंज्ञीपचेर्दियोंमें ही होता 1 १। “मुणशीवापजत्ती इस्दादि गायारा निशरिखित झगुदाए पृष्ठ १५ एत्ति: है में लग लगा 'ादिपे ।




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