आत्म - वेदना | Aatm Vedana
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
86
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)८ १६ )
है कि जो लोग गे के साथ कहते हैं कि “साई, हम तो पंत जी
को समझ ही नहीं सकते” उनको भी यहाँ ने समझने का कोई
वहाना नहीं पिता । सुरदास के कुर उनकी अरिट विदा के
चाहे जितने अच्छ उदाहरण हों किन्तु कवि सृरदाख की महानता
के सद्यं । उनकी महानना तो उनके तीर से सीधी चोर कर्मे
चालें पदों की सरल महानता, तथा मघुर गरिसा पर स्थित है ।
कथि क धिकास ही इस प्रकार होता है । प्रार्स्स में साषा
जरि, अटत, तथा स्पन्दन हीन सी रोती हैः । यड् बड़ शाब्द
रहने है किन्तु उन बड़ वड् शब्दों म भाव चये दी रहते है ।
पंक्तियां हदय को सीधे स्पदां नदीं कर खकर्ती । वे सीधी, जान
दार, और पुरअसर नहीं होतीं । किन्तु ज्यों ज्यों कथि उन्नति
करता हैं, उयों ज्यों उसकी कला तथा स्वयं उसका विकास होता
ह, ज्या ज्यों उसकी कर्म मजती हैं, भाव गहरे, विचार सार-
गर्भित होते जाते हैं, त्यों त्यों भाषा पर से म्रेल दृटती जाती
चह घिदुद्ध तथा परिमाजित होती जाती हे; उसमें सर्ठता,
तथा गम्भीरता, मघ्युरता तथा प्रचार, जीवन तथा. -दाक्ति उम्ती
जाती र, पिथ साव स्था यद्धमचव की गहराई से स्पन्दित
हो उठती हैं; और पाब्दों में अर्थ आँखों से स्वल उठते हैं तथा
उनसे जआॉग्ल पिलात हो हृदय समझ जाता है कि उनसे कया क्या
सर दुआ हैं ।
“घन घमंड सभ गरजत घोर,
पिवानदीव डरपत मम मारा ।”'
पदट्कःर पंडित अथवा अपंडित सभी पक साथ जम उठते
हैं । जो असली जाद है घह सब पर असर करता है--बाद को
और विचार कर पंडित गण कर्टामक विवेचन कर कर के चाहे
और मुग्घ होते रहें, किन्तु असली जादू जो पंक्तियों का है चह
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