पूर्व और पश्चिम की संत महिलाए | Puurv Aur Pashchim Kii Sant Mahilaaen
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
22 MB
कुल पष्ठ :
322
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रस्तावना ६
ज्ञान से वह तत्त्व पाते हैं जिसकी उन्हे श्रावश्यकता है । इस प्रभियान में वे
इस बात से श्रौर भी उत्तेजना एवं सन्तोष प्राप्त करते हैं कि जेसा उन्हें भ्रपेक्षित था
विज्ञान श्रौर धर्म के बीच एक बहुत बड़ी खाई है, उसके विपरीत उन्हें भौतिक
विज्ञान की कुछ भ्रत्याघुनिक खोजों के विचार वेदों मे सहस्रो वषं पूवं के गये
मिलते है ।
पूवं श्रौर परिचम, दोनों एक-दूसरे को बहुत-कु दे सकते ह । एक नया श्रौर श्रच्छा
संसार बनाने के लिए हम इस योगदान को जितना निकट ला सकं, उतना ही हमारे
लिए अ्रच्छा होगा । वर्षो पूवं विवेकानन्द ने इस स्थिति का इतना सही चित्रण
किया था कि में फिर उन्हें उद्घत करने के प्रलोभन से वंचित नही रह सकता।
वे लिखते ह-- “यह बात नहीं कि हम भारतवासियों को पश्चिम से ही सब
कुछ सीखना रहै, न पदिचम को ही हमसे सब कुछ सीखना है; श्रपितु दोनों
को ही अपना सब कुछ भावी सन्तानों को उस श्रादर्श संसार की रचना कं लिए
सौंप देना होगा जो युगों से हमारा स्वप्न है।” पूर्व श्रौर पद्चिम, दोनों को इस
संसार के निर्माण के कार्य में अपना -श्रपना योगदान देना है श्रौर यही कारण
है कि में इसे प्रत्यन्त महत्त्वपूर्ण समझता हें कि हम एक-दूसरे को श्रधिक से
ग्रघिक श्रच्छी तरह समझ सकें ग्रौर यह उचित ही होगा कि पूर्व श्रौर पदिचम के सनतों
पर यह् छोटी-सी प्स्तक पाठकों के हाथ में पहुँचे ।
--कंनथ वॉकर
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